Author: कविता बहार

  • हिंदी साहित्य जगत में अनेक सितारे हैं

    हिंदी साहित्य जगत में अनेक सितारे हैं

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    हिंदी साहित्य जगत में , अनेक सितारे हैं

    कुछ टिमटिमाते तारे, कुछ सूर्य की तरह गरम अंगारे हैं |

    कुछ स्वयं को साहित्य जगत में , स्थापित कर पाते हैं

    कुछ गुमनामी के , अँधेरे में खो जाते हैं |

    कुछ तो पुराने सतित्याकारों को ही , साहित्य जगत का आधार स्तम्भ मान बैठे हैं

    नवीन उदीयमान साहित्यकारों को , पराया मान बैठे हैं |

    कुछ नहीं चाहते कि , नित नए कमल खिलें

    कुछ नहीं चाहते कि , दूसरों की भी दाल गले |

    कुछ ऐसा समझते हैं कि केवल , उनकी रचनाएं ही गर्व का विषय हैं

    दूसरों की रचनाओं को वे , गर्व का विषय कैसे कह दें |

    वे चाहते हैं कि लोग उनकी रचनाओं का आचमन कर , सकारात्मक टिप्पणी करें

    पर शायद भूल जाते हैं कि दूसरों की उत्कृष्ट रचनाओं पर , वे भी ताली बजा सकते हैं |

    नये युग का निर्माण करना है तो , उदीयमान रचनाकारों को स्वीकारना ही होगा

    उनके द्वारा स्थापित किये जा रहे , नित – नए आयामों को अधिकार दिलाना ही होगा |

    एक स्वस्थ साहित्य जगत का निर्माण करना है

    तो सभी को विश्व साहित्य मंच पर लाना ही होगा |

    कलम किसी की भी हो , विचार किसी के भी हों

    उदीयमान रचनाकारों को भी , खुला आसमां दिलाना ही होगा |

    उदीयमान हिंदी साहित्यकारों को , उनका मुकाम दिलाना ही होगा

    सबको गले लगाना होगा , सबके लिए ताली बजाना ही होगा |

    हिंदी को विश्व मंच पर स्थापित करना है

    तो इस गीत को अपनी रचनाओं का हिस्सा बनाना ही होगा |

    आइये सब साथ बढ़ चलें , दूर स्वच्छ गगन की ओर

    जहां सभी को सूर्य की तरह , चमकने का अधिकार हो |

    जहां आसमां , किसी से भेद नहीं करता

    जहां सभी को पंख फैला , उड़ने का अवसर हो |

    जहां समा लेता है , उन्मुक्त गगन अपनी आगोश में

    देता है पंख लगा अवसरों की , उड़ान भरने का हौसला |

    तो विलंब कैसा और किसका इंतज़ार

    तो आओ चलो मिलकर चलें |

    हिंदी साहित्य जगत को शिखर पर विराजेंऔर स्थापित करें नित नए आयाम ||

  • विश्व ही परिवार है- आर आर साहू

    विश्व ही परिवार है- आर आर साहू

    विश्व ही परिवार है- आर आर साहू

    ————— परिवार ————-
    ऐक्य अपनापन सुलभ सहकार है,
    इस धरा पर स्वर्ग वह परिवार है।

    मातृ,भगिनी, पितृ,भ्राता,रुप में,
    शक्ति-शिव आवास सा घर-द्वार है।

    बाँटते सुख-दुःख हिलमिल निष्कपट,
    है प्रथम कर्तव्य फिर अधिकार है।

    है तितिक्षा,त्याग,का आदर्श भी,
    प्रेम, मर्यादा सुदृढ़ आधार है।

    दृष्टि जितना और जैसा देखती,
    उस तरह,उतना, उसे संसार है।

    नीर,पावक,वायु ये धरती,गगन,
    देह सबके मेल का उद्गार है।

    बोलती है दिव्य भारत-भारती,
    याद रख यह विश्व ही परिवार है।

    रेखराम साहू।

  • विधाता छंद मय मुक्तक- फूल

    विधाता छंद मय मुक्तक- फूल

    छंद
    छंद

    रखूँ किस पृष्ठ के अंदर,
    अमानत प्यार की सँभले।
    भरी है डायरी पूरी,
    सहे जज्बात के हमले।
    गुलाबी फूल सा दिल है,
    तुम्हारे प्यार में पागल।
    सहे ना फूल भी दिल भी,
    हकीकत हैं, नहीं जुमले।
    .
    सुखों की खोज में मैने,
    लिखे हैं गीत अफसाने।
    रचे हैं छंद भी सुंदर,
    भरोसे वक्त बहकाने।
    मिला इक फूल जीवन में,
    तुम्हारे हाथ से केवल।
    रखूँगा डायरी में ही,
    कभी दिल ज़ान भरमाने।
    .
    कभी सावन हमेशा ही,
    दिलों मे फाग था हरदम।
    सुनहली चाँदनी रातें,
    बिताते याद मे हमदम।
    जमाना वो गया लेकिन,
    चला यह वक्त जाएगा।
    पढेंगे डायरी गुम सुम,
    रखेंगे फूल मरते दम।
    .
    गुलाबी फूल सूखेगा,
    चिपक छंदो से जाएगा।
    गुमानी छंद भी महके,
    पुहुप भी गीत गाएगा।
    हमारे दिल मिलेंगे यों,
    यही है प्यार का मकस़द,
    अमानत यह विरासत सा
    सदा ही याद आएगा।
    . ______
    बाबू लाल शर्मा, बौहरा, विज्ञ

  • कैसी ये महामारी – संस्कार अग्रवाल

    कैसी ये महामारी

    कोरोना वायरस
    corona

    कहाँ से आया कैसे आया, पता नहीं क्यों आया है।
    करना चाहता क्या है ये, धरती पे क्यों आया है।।
    क्या चाहता है क्यों चाहता है, किस मनसूबे से आया है।
    मचा रहा भयंकर तबाही क्यों, किस ने इसे बनाया है।।



    क्या खोया क्या पाया हमने, सच्चाई बताने आया है।
    कर रहा विनाश सब का, मानो प्रकृति को गुस्सा आया है।।
    रुक नहीं रहा जा नहीं रहा,क्या सब की जान लेने आया है।
    किया दोहन प्रकृति का हमने, उसका प्रतिशोध लेने आया है।।



    साथ नहीं कोई दूर नहीं कोई, सब को अलग करने ये आया है।
    बता रहा सच्चाई सब की, हकीकत बताने तो नहीं आया है।।
    हो रहा दिखावा सब जगह अब, कही पर्दा उठाने तो नहीं आया है।
    कर रहा अवगत आगे के लिए, सब की जान लेने तो नहीं आया है।।


    किया कैद जानवरो को कभी हमने, हमें कैद करने तो नहीं आया है।
    हमने समझा कमजोर प्रकृति को, उसकी ताकत दिखाने तो नहीं आया है।।
    सह नहीं सकते रह नहीं सकते, हमें मजबूर करने तो नहीं आया है।
    ले रहा जान सबकी ये, कही सब की जान लेने तो नहीं आया है।।



    की कटाई पेड़ो की हमने, उसकी कीमत हमें समझाने तो नहीं आया हैं।
    कर रहें मनमानी अपनी, हम पर अंकुश लगाने तो नहीं आया है।।
    आ गयी महामारी कैसी ये, कही हमने ही तो इसे नहीं बनाया है।
    किया प्रकृति का दोहन हमने,कही सबकी जान लेने तो नहीं आया है।।

  • प्रकृति से प्रेम पर कविता

    प्रकृति से प्रेम पर कविता

    नदी

    कितने खूबसूरत होते बादल कितना खूबसूरत ये नीला आसमां मन को भाता है।
    रंग बदलती अपनी हर पल ये प्रकृति अपनी मन मोहित कर जाता है।

    कभी सूरज की लाली है कभी स्वेत चांदनी कभी हरी भरी हरियाली है।
    देख तेरा मन मोहित हो जाता प्रकृति तू प्रेम बरसाने वाली है।

    प्रकृति ही हम सब को मिल कर रहना करना प्रेम सिखाती है।
    हर सुख दुख की साथी होती साथ सदा निभाती है।

    है प्रकृति से प्रेम मुझे इसके हर एक कण से मैने कुछ न कुछ सीखा है।
    प्रकृति तेरी गोद में रहकर ही मैने इस दुनिया को अच्छे से देखा है।

    हम सबको तू जीवन देती है देती जल और ऊर्जा का भंडार।
    परोपकार की सिक्षा देती हमको लुटाती हम पर अपना प्यार।

    फल फूल छाया देती देती हो शीतल मन्द सुगंधित हवा।
    प्रकृति तेरी खूबसूरती जैसे हो कोई पवित्र सी दुआ।

    आओ हम सब प्रकृति से प्रेम करें करें उसका सम्मान।
    सेवा नित नित प्रकृति की करें गाएं उसकी गौरव गान।

    रीता प्रधान
    रायगढ़ छत्तीसगढ़