Author: कविता बहार

  • श्री नेल्सन मंडेला जी का गुणगान

    श्री नेल्सन मंडेला जी का गुणगान

    kavita

    अश्वेत प्रथा को कर नष्ट जग में मचा दिया हल-चल,
    मंडेला जी को गोरों ने कर दिया देश से बेदखल।
    बदला समय बदले लोग पर न बदले नेल्सन मंडेला,
    अश्वेतों के हक के लिए जेल में रह गए 27 साल अकेला।
    अदम्य साहस – अश्वेत क्रान्ति के कारण बन गए महान,
    मैं लेखन से कर रहा हूँ,श्री नेल्सन मंडेला जी का गुणगान।

    लाकर क्रांति बदल दिया रंगभेद का आँधी,
    सभी लोग कहते हैं इन्हें अफ्रीकन गांधी।
    अश्वेत क्रान्ति की सफलता से मिला इनको “भारत रत्न” सम्मान,
    मैं लेखन से कर रहा हूँ, श्री नेल्सन मंडेला जी का गुणगान।

    हर तरफ था अत्याचार – जुर्म का बसेरा,
    हमेशा अश्वेत लोगों पर रहता दुःख का अंधेरा।
    कोई जुल्म कितना सहे और कितना सहे अपमान,
    बेसहारों के आजादी के लिए कर दिया अपना जीवन कुर्बान।
    लेकर प्रेरणा महात्मा गांधी से बन गए महान इंसान,
    मै लेखन से कर रहा हूँ, श्री नेल्सन मंडेला जी का गुणगान।

    अन्याय पर न्याय का हो गया जीत,
    दुःखी – अश्वेतों ने गाया स्वतंत्रता का गीत।
    मंडेला के अथक प्रयास से आयी मायूस चेहरों पर मुस्कान,
    मैं लेखन से कर रहा हूँ, श्री नेल्सन मंडेला जी का गुणगान,

    रहकर कारावास में लोगों को स्वरचित कविता सुनाते,
    दुःखी – बेसहारा लोगों के मन से उदासीनता को भगाते।
    क्रान्ति से बदल दिया इतिहास देख विश्व के लोग हैं हैरान,
    मैं लेखन से कर रहा हूँ, श्री नेल्सन मंडेला जी का गुणगान।

    संसार में अब नहीं होता कहीं भी अश्वेतों पर अत्याचार – तिरस्कार,
    सम्मान में मंडेला जी को मिला पारितोषिक और नोबेल पुरस्कार।
    क्रान्तिकारी मंडेला जी के कारण गौरवान्वित हो उठा जमीन और आसमान,
    मै लेखन से कर रहा हूँ, श्री नेल्सन मंडेला जी का गुणगान।

    अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440.

  • अंतर्राष्ट्रीय न्याय के लिए विश्व दिवस -अकिल खान

    अंतर्राष्ट्रीय न्याय के लिए विश्व दिवस -अकिल खान

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    अन्याय पर जहाँ न्याय की होती है जीत,
    जुल्म का होता है अंत यही है यहाँ की रीत।
    मिलता है जहाँ सबको अधिकार,
    अत्याचार का जहाँ होता है तिरस्कार।
    गरीबों का हमदर्द और बेबसों का सहारा,
    जहाँ हो न्याय की पूजा, वो है न्यायपालिका हमारा।

    दहेज -प्रथा – अंधविश्वास का करे हमेशा विरोध,
    अधिकार – कानून का पालन के लिए लोगों से करें अनुरोध।
    आतंकवाद – भ्रष्टाचार पर कार्यवाही ये करे करारा,
    जहाँ हो न्याय की पूजा, वो है न्यायपालिका हमारा।

    शरणार्थी – पर्दाप्रथा जैसे विवादों का किया हल,
    न्यायपालिका की नीति से खुश हैं लोग हर-पल,
    काटकर सजा मुजरिम अब आतंक न करें दोबारा,
    जहाँ हो न्याय की पूजा, वो है न्यायपालिका हमारा।

    दहेज प्रथा बाल – विवाह आदि समस्याओं को किया समाप्त,
    न्याय ही धर्म है न्यायपालिका में न्याय है व्याप्त,
    जो है सच्चा वो जीता जो झूठा वो सचमुच हारा,
    जहाँ हो न्याय की पूजा, वो है न्यायपालिका हमारा।

    दास प्रथा जमीन विवाद सभी का होता न्यायगत सुनवाई,
    भ्रष्टाचारी – तानाशाही लोग न्यायपालिका से मांगते हैं दुहाई।
    भारतीय – अंतरराष्ट्रीय न्यायपालिका के लिए लगाओ जय का नारा,
    जहाँ हो न्याय की पूजा, वो है न्यायपालिका हमारा।

    अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440.

  • पर्यावरण असंतुलन पर कविता

    पर्यावरण असंतुलन पर कविता

    आज पर्यावरण असंतुलन हो चुका है . पर्यावरण को सुधारने हेतु पूरा विश्व रास्ता निकाल रहा हैं। लोगों में पर्यावरण जागरूकता को जगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित विश्व पर्यावरण दिवस दुनिया का सबसे बड़ा वार्षिक आयोजन है। इसका मुख्य उद्देश्य हमारी प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाना और दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों को देखना है।

    पर्यावरण असंतुलन पर कविता

    अकिल खान की कविता

    Save environment
    Environment day

    काट वनों को बना लिए सपनों सा महल,
    अति दोहन से भूमि में होती हर-पल हल-चल।
    रासायनिक दवाईयों का खेती में करते अति उपयोग,
    बंजर हो गई धरती की पीड़ा को क्यों नहीं समझते लोग।
    मिलकर करेंगे प्रकृति की समस्याओं का उन्मूलन,
    होकर कर्मठ करेंगे हम, पर्यावरण का संतुलन।

    जनसंख्या वृद्धि से भयावह हो गया धरती का हाल,
    अपशिष्ट – धुआँ और कल – कारखाने बन गया मानव का काल।
    सुंदर वन पशु-पक्षियों के कारण खुबसूरत दिखती थी धरती,
    बचालो जग को ये धरा मानव को है गुहार करती।
    अनदेखा करता है इंसान इन समस्याओं को कैसी है ये चलन,
    होकर कर्मठ करेंगे हम, पर्यावरण का संतुलन।

    कल – कल नदी का बहना और झरनों की मन मोहक आवाज,
    कम होते जल से स्तर प्राकृतिक संकट का हो गया आगाज।
    चिड़ियों की चहचहाहट और फूलों की मुस्कान,
    ऐसे दृश्यों को मिटाकर दुःखी क्यों है इंसान।
    मानव के खातिर बिगड़ गया प्राकृतिक संतुलन,
    होकर कर्मठ करेंगे हम, पर्यावरण का संतुलन।

    नये वस्त्र – मकान की लालच में पेड़ों को दिए काट,
    हो गए प्रदूषित नदी – समुद्र और तालाब – घाट।
    बंजर हो गया धरा प्लास्टिक के अति उपयोग से,
    इन समस्याओं का होगा निदान पेपर बैग के उपभोग से।
    सुधर जाओ यही है समय बैठ एकांत में करो मनन,
    होकर कर्मठ करेंगे हम, पर्यावरण का संतुलन।

    उमस-गर्मी से बढ़ता है प्रतिदिन तापमान,
    देखो जल रही है धरती और आसमान।
    विषैला हो गया हवा प्रदूषित हो गया है पानी,
    मानव की मनमानी से प्रकृति को हो रहा है हानि।
    लगाऐंगे पेड़ होगा शुद्ध हवा – धरा और गगन,
    होकर कर्मठ करेंगे हम, पर्यावरण का संतुलन।


    —- अकिल खान रायगढ़ जिला – रायगढ़ (छ. ग.) पिन – 496440.

    श्याम कुँवर भारती की कविता

    मौसम बदल जाएगा |
    पेड़ एक लगाकर देखो मौसम बदल जाएगा |
    उजड़े जंगल बसाकर देखो मौसम बदल जाएगा |
    घुल गया जहर साँसो हर शहर की  फिजाओं मे |
    साँसो जहर बुझाकर देखो मौसम बदल जाएगा |
    हो रहे हर इंसां यहाँ अब मर्ज कैसे कैसे |
    जड़ मर्ज मिटाकर देखो मौसम बदल जाएगा |
    टीवी केन्सर अस्थमा चर्म  रोग कोई नया नहीं  |
    हुआ क्यो पताकर देखो मौसम बदल जाएगा |
    पड़ी जरूरत काट जंगल शहर बसा रहे लोग |
    बिना जंगल हवा बनाकर देखो मौसम बदल जाएगा |
    है जीव जन्तु जानवर जलचर थलचर नभचर जरूरी |
    संतुलन सबका बिगाड़कर देखो मौसम बदल जाएगा |
    साँप चूहा नेवला किट पतंग हिरण घास शेर लाज़मी |
    बिन आहार जीव जिलाकर देखो मौसम बदल जाएगा |
    चील गिद्ध बाज कौआ कोयल गोरैया सब चाहीए |
    बिन भवरा पराग कराकर देखो मौसम बदल जाएगा |
    सहारा है सबका तरुवर बन गए दुश्मन हम ही |
    बिन बीज बृक्ष सृस्टी चलाकर देखो मौसम बदल जाएगा |
    वास्प बादल बारिस बहारे सब एक दूसरे के सहारे |
    बिन बादल बरसा कराकर देखो मौसम बदल जाएगा |

    श्याम कुँवर भारती [राजभर]
    कवि ,लेखक ,गीतकार ,समाजसेवी ,-995550928

  • वह खून कहो किस मतलब का

    वह खून कहो किस मतलब का

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    वह खून कहो किस मतलब का
    जिसमें उबाल का नाम नहीं।
    वह खून कहो किस मतलब का
    आ सके देश के काम नहीं।
    वह खून कहो किस मतलब का
    जिसमें जीवन, न रवानी है!
    जो परवश होकर बहता है,
    वह खून नहीं, पानी है!


    उस दिन लोगों ने सही-सही
    खून की कीमत पहचानी थी।
    जिस दिन सुभाष ने बर्मा में
    मॉंगी उनसे कुरबानी थी।
    बोले, “स्वतंत्रता की खातिर
    बलिदान तुम्हें करना होगा।
    तुम बहुत जी चुके जग में,
    लेकिन आगे मरना होगा।


    आज़ादी के चरणें में जो,
    जयमाल चढ़ाई जाएगी।
    वह सुनो, तुम्हारे शीशों के
    फूलों से गूँथी जाएगी।
    आजादी का संग्राम कहीं
    पैसे पर खेला जाता है?
    यह शीश कटाने का सौदा
    नंगे सर झेला जाता है”


    यूँ कहते-कहते वक्ता की
    आंखों में खून उतर आया!
    मुख रक्त-वर्ण हो दमक उठा
    दमकी उनकी रक्तिम काया!
    आजानु-बाहु ऊँची करके,
    वे बोले, “रक्त मुझे देना।


    इसके बदले भारत की
    आज़ादी तुम मुझसे लेना।”
    हो गई सभा में उथल-पुथल,
    सीने में दिल न समाते थे।
    स्वर इनकलाब के नारों के
    कोसों तक छाए जाते थे।


    “हम देंगे-देंगे खून”
    शब्द बस यही सुनाई देते थे।
    रण में जाने को युवक खड़े
    तैयार दिखाई देते थे।
    बोले सुभाष, “इस तरह नहीं,
    बातों से मतलब सरता है।
    लो, यह कागज़, है कौन यहॉं
    आकर हस्ताक्षर करता है?


    इसको भरनेवाले जन को
    सर्वस्व-समर्पण काना है।
    अपना तन-मन-धन-जन-जीवन
    माता को अर्पण करना है।
    पर यह साधारण पत्र नहीं,
    आज़ादी का परवाना है।
    इस पर तुमको अपने तन का
    कुछ उज्जवल रक्त गिराना है!


    वह आगे आए जिसके तन में
    खून भारतीय बहता हो।
    वह आगे आए जो अपने को
    हिंदुस्तानी कहता हो!
    वह आगे आए, जो इस पर
    खूनी हस्ताक्षर करता हो!
    मैं कफ़न बढ़ाता हूँ, आए
    जो इसको हँसकर लेता हो!”

    सारी जनता हुंकार उठी-
    हम आते हैं, हम आते हैं!
    माता के चरणों में यह लो,
    हम अपना रक्त चढाते हैं!
    साहस से बढ़े युबक उस दिन,
    देखा, बढ़ते ही आते थे!
    चाकू-छुरी कटारियों से,
    वे अपना रक्त गिराते थे!

    फिर उस रक्त की स्याही में,
    वे अपनी कलम डुबाते थे!
    आज़ादी के परवाने पर
    हस्ताक्षर करते जाते थे!
    उस दिन तारों ने देखा था
    हिंदुस्तानी विश्वास नया।
    जब लिक्खा महा रणवीरों ने
    ख़ूँ से अपना इतिहास नया।


    – श्री गोपाल दास व्यास

  • सुभाषचंद्र बोस पर कविता

    सुभाषचंद्र बोस पर कविता

    सुभाषचंद्र बोस पर कविता

    है समय नदी की बाढ़ कि जिसमें सब बह जाया करते हैं।
    है समय बड़ा तूफ़ान प्रबल पर्वत झुक जाया करते हैं ।।


    अक्सर दुनिया के लोग समय में चक्कर खाया करते हैं।
    लेकिन कुछ ऐसे होते हैं, इतिहास बनाया करते हैं ।।
    यह उसी वीर इतिहास-पुरुष की अनुपम अमर कहानी है।
    जो रक्त कणों से लिखी गई,जिसकी जय-हिन्द निशानी है।।


    प्यारा सुभाष, नेता सुभाष, भारत भू का उजियारा था ।
    पैदा होते ही गणिकों ने जिसका भविष्य लिख डाला था।।
    यह वीर चक्रवर्ती होगा, या त्यागी होगा सन्यासी।
    जिसके गौरव को याद रखेंगे, युग-युग तक भारतवासी।।


    सो वही वीर नौकरशाही ने, पकड़ जेल में डाला था ।
    पर क्रुद्ध केहरी कभी नहीं फंदे में टिकने वाला था।।
    बाँधे जाते इंसान, कभी तूफ़ान न बाँधे जाते हैं।
    काया ज़रूर बाँधी जाती, बाँधे न इरादे जाते हैं।।


    वह दृढ़-प्रतिज्ञ सेनानी था, जो मौका पाकर निकल गया।
    वह पारा था अँग्रेज़ों की मुट्ठी में आकर फिसल गया।।
    जिस तरह धूर्त दुर्योधन से, बचकर यदुनन्दन आए थे।
    जिस तरह शिवाजी ने मुग़लों के, पहरेदार छकाए थे ।।


    बस उसी तरह यह तोड़ पिंजरा, तोते-सा बेदाग़ गया।
    जनवरी माह सन् इकतालिस, मच गया शोर वह भाग गया।।
    वे कहाँ गए, वे कहाँ रहे, ये धूमिल अभी कहानी है।
    हमने तो उसकी नई कथा, आज़ाद फ़ौज से जानी है।।

    – गोपालप्रसाद व्यास