Author: कविता बहार

  • अपना जीवन पराया जीवन – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “

    अपना जीवन पराया जीवन – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “

    वर्षा बारिश

    अपना जीवन पराया जीवन

    अस्तित्व को टटोलता जीवन

    क्या नश्वर क्या अनश्वर

    क्या है मेरा , क्या उसका

    जीवन प्रेम या स्वयं का परिचय

    जीवन क्यूं करता हर पल अभिनय

    क्या है जीवन की परिभाषा।



    जीवन , जीवन की अभिलाषा

    गर्भ में पलता जीवन

    कलि से फूल बनता जीवन

    मुसाफिर सा , मंजिल की

    टोह में बढ़ता जीवन

    चंद चावल के दाने

    पंक्षियों का बनते जीवन।



    प्रकृति के उतार चढ़ाव से

    स्वयं को संजोता जीवन

    कभी पराजित सा , कभी अभिमानी सा

    स्वयं को प्रेरित करता जीवन।



    माँ की लोरियों में

    वात्सल्य को खोजता जीवन

    कहीं मान अपमान से परे

    स्वयं को संयमित करता जीवन।



    कहीं सरोवर में कमल सा खिलता जीवन

    कहीं स्वयं को स्वयं पर बोझ समझता जीवन

  • निज जीवन अपनापन पा लूँ – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “

    निज जीवन अपनापन पा लूँ – अनिल कुमार गुप्ता ” अंजुम “

    निज जीवन अपनापन पा लूँ - अनिल कुमार गुप्ता " अंजुम "

    निज जीवन अपनापन पालूँ
    प्रभु महिमा हर क्षण मै गा लूं
    विनम्रता बने गहना मेरी
    आस्तिकता अलंकार बना लूं

    निज जीवन अपनापन पालूँ
    प्रभु महिमा हर क्षण मै गा लूं

    सर्वस्व लुटा दूं तुझ पर मै
    जीवन में भक्ति अपना लूं
    निर्मल भाव करूं सिमरन मेरा
    निष्कलंक हो जीवन मेरा

    निज जीवन अपनापन पालूँ
    प्रभु महिमा हर क्षण मै गा लूं

    विजय प्राप्त हो मुझे स्वयं पर
    योग को जीवन में अपना लूं
    संयम बन जाए उपमा मेरी
    संकल्प मार्ग पर बढ़ता जाऊं

    निज जीवन अपनापन पालूँ
    प्रभु महिमा हर क्षण मै गा लूं

    निर्दोष नेत्र अवलोकन चाहूँ
    आलिंगन प्रभु मै तेरा पाऊँ
    उत्तम अवसर सुकर्म मिले प्रभु
    निष्काम भाव से बलि – बलि जाऊं

    निज जीवन अपनापन पालूँ
    प्रभु महिमा हर क्षण मै गा लूं

  • संगीत और जीवन -बिसेन कुमार यादव’बिसु

    संगीत और जीवन -बिसेन कुमार यादव'बिसु

    आना है, और चलें जाना है!
    जीवन का रीत पुराना है!!

    जीवन का नहीं ठिकाना है!
    जन्म लिया तो मर जाना है!!

    गाना है और बजना है!
    जीवन एक तराना है!!

    संगीत को मीत बनाओ!
    शब्दों को गीत बनाओ!!

    सा,रे,गा,मा,पा,धा नि,से,
    जीवन में राग बना!

    और दो दिलों के मेल से
    अमर प्रेम अनुराग बना!!

    संगीत के सात स्वरों से,

    मधुर-मधुर सरगम बना!

    कजरी,सुआ, झुला, हिन्डोला,
    आल्हा जैसे गीत बना!!

    स्वारों के साथ-साथ ताल से ताल मिलाओ!
    पैरों को थिरकाओ, हाथों को घुमाओ!!

    झुमो नाचों गाओ कमर तो मटकाओ!
    मधुर संगीत बज रहीं,थोड़ा गुनगुनाओ!!

    दुःख ,दर्द,पीड़ा सब भूल जाए!
    संगीत के मधुर रस में घुल जाए!!

    खुशी गम प्यार ,नफरत में संगीत!
    जीवन के हर पहलुओं में संगीत!!

    उत्सव,मेले, नृत्यों में छटा बिखेरे संगीत!
    खिलखिलाती मुस्कान हर चेहरे में संगीत!!

    कभी ढोल नगाड़ा बजते है!
    अरमानों के सपने सजते है!!

    पुजा, अर्चना छठ्ठी शादी और त्यौहारों में!
    हवाओं में फिजाओं में सावन के बहारों में!!

    जीवन में रीति-रिवाज शैली ढंग है!
    संगीत के बीना यह दुनिया बेरंग है!!

    झर-झर करते झरनों में संगीत!
    बादलों के गर्जनो में संगीत!!

    नब्जो में बहती रक्त के स्पंदन में संगीत!
    धक-धक करते धड़कन में संगीत!!

    मधुर स्वर बहती बांसुरी और सितारों में!
    सहनाई,तंबुरा,तानपुरा वाद्य के झनकारों में!!

    पर्वत गाते,धरती गाती फसलें गाती!
    कल-कल बहती करती नदियां गाती!!

    वर्षा के गिरते बूंदों पर संगीत!
    हर दिलों में जिन्दा है संगीत!!

    जीव के जन्म में जीवन के मरण में संगीत!
    मंगलगीत, उत्सव और नामकरण में संगीत!!
    चाहे न लो या लो प्रभु का नाम!
    संगीत के बीना नहीं कुछ काम!!

    बिसेन कुमार यादव’बिसु’
    ग्राम-दोन्देकला,थाना-विधानसभा
    जिला रायपुर छत्तीसगढ़

  • राह नीर की छोड़ – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “

    राह नीर की छोड़ – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “

    राह नीर की छोड़ - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम "
    प्रेरणादायक कविता



    राह नीर की छोड़ बनो तुम वीर ।
    राह कायरता की छोड़ बनो तुम धीर।।

    राह निज की तुम छोड़ बनो सर्वस्व।
    राह आलस की छोड़ बनो तुम कर्मठ।।

    राह कटुता की छोड़ बनो तुम कृतघ्न।
    राह पशुता की छोड़ बनो तुम मानव।।

    राह शत्रुता की छोड़ बनो तुम मित्र।
    राह अहम की छोड़ बनो तुम सज्जन।।

    राह उदासीनता की छोड़ अपनाओ तुम कर्म।
    राह चंचलता की छोड़ धरो गांभीर्य।।

    राह शठता की छोड़ अपनाओ सज्जनता।
    राह घृणा की छोड़ अपनाओ वात्सल्य।।

    राह मरण की छोड़ धरो अमरत्व।
    राह अस्त की भूल , उदय हो तेरा।।

    राह नरत्व की छोड़ अपनाओ देवत्व।
    राह उदासी की छोड़ अपनाओ इंसानियत।।

    राह नीर की छोड़ बनो तुम वीर।
    राह कायरता की छोड़ बनो तुम धीर।।

  • मेरी कक्षा पर कविता – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “

    मेरी कक्षा पर कविता – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “

    कविता का शीर्षक: मेरी कक्षा

    कवि: अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    प्रसंग: यह कविता एक विद्यार्थी के दृष्टिकोण से लिखी गई है, जो अपनी कक्षा के प्रति गहरा लगाव रखता है। कविता में कक्षा को विद्यालय का शान बताया गया है। कक्षा में शिक्षकों को सम्मान दिया जाता है और सभी विद्यार्थी एक-दूसरे के प्रति मित्रवत व्यवहार करते हैं।

    मेरी कक्षा पर कविता - अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम "

    मेरी कक्षा पर कविता – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “

    मेरी कक्षा मेरे विद्यालय की शान है।
    मेरी कक्षा में शिक्षकों को मिलता सम्मान है।

    मेरी कक्षा की बात निराली
    सब बच्चों की सूरत लगती है भोली- भाली।

    पढ़ाई में हमारा न कोई सानी है
    पढ़ते समय हमें याद आती नहीं नानी है।

    मेरी कक्षा के टीचर की बात ही कुछ और है
    पढ़ाने में बच्चों को लगाते पूरा जोर हैं।

    मेरी कक्षा में कभी तकरार नहीं होती
    मेरी कक्षा में कभी भी लड़ाई नहीं होती।

    मेरी कक्षा में सब समय पर स्कूल आते हैं
    प्रभु को याद करने सब प्रार्थना में जाते हैं।

    मेरी कक्षा का एक ही नारा है
    केंद्रीय विद्यालय एक परिवार हमारा है ।

    मेरी कक्षा मेरे विद्यालय की शान है।
    मेरी कक्षा में शिक्षकों को मिलता सम्मान है।

    कविता के प्रमुख बिंदु:

    • कक्षा का महत्व: कविता में कक्षा को विद्यालय का केंद्र बताया गया है। कक्षा में ही विद्यार्थी ज्ञान प्राप्त करते हैं और एक-दूसरे के साथ मेलजोल बढ़ाते हैं।
    • शिक्षकों का सम्मान: कविता में शिक्षकों को सम्मान दिया गया है। शिक्षक विद्यार्थियों को ज्ञान देने के साथ-साथ उनका मार्गदर्शन भी करते हैं।
    • विद्यार्थियों का व्यवहार: कविता में विद्यार्थियों को भोला और मिलनसार बताया गया है। वे एक-दूसरे के साथ मिलकर पढ़ाई करते हैं और कभी भी झगड़ा नहीं करते।
    • विद्यालय की एकता: कविता में विद्यालय को एक परिवार बताया गया है। सभी विद्यार्थी और शिक्षक मिलकर एक परिवार की तरह रहते हैं।

    कविता का संदेश:

    यह कविता हमें बताती है कि एक कक्षा सिर्फ पढ़ाई का स्थान ही नहीं होती, बल्कि यह एक ऐसा माहौल होता है जहां हम सीखते हैं, बढ़ते हैं और एक-दूसरे के साथ संबंध बनाते हैं। हमें अपनी कक्षा और शिक्षकों का सम्मान करना चाहिए।

    प्रसंग का निष्कर्ष:

    यह कविता एक आदर्श कक्षा का चित्रण करती है। यह कविता सभी विद्यार्थियों और शिक्षकों के लिए प्रेरणादायी है। हमें भी अपनी कक्षा को एक आदर्श कक्षा बनाने का प्रयास करना चाहिए।

    इस प्रसंग का उपयोग निम्नलिखित स्थितियों में किया जा सकता है:

    • स्कूल के वार्षिकोत्सव में भाषण देने के लिए।
    • कक्षा में निबंध लेखन प्रतियोगिता के लिए।
    • विद्यालय के समाचार पत्र में लेख लिखने के लिए।