जुगाड़ पर कविता – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम “
जुगाड़ ! जुगाड़ ! जुगाड़ !
आखिर क्या है ये जुगाड़ ?
भाई जुगाड़ तो वह चीज है
जिसके बगैर आड़ नहीं
यानि !
यदि हो जाए जुगाड़
तो समझो आपके काम को मिल जाए आड़
यानि !
हो जायें आपके काम सफल
छा जाए कुछ पलों के लिए
आपके जीवन में मंगल
भाई हमें कुछ विस्तार से
जुगाड़ की माया समझाइये !
देखो भाई!
जुगाड़ एक कला है
इसके लिए कुछ विशेष
योग्यतायें अतिआवश्यक हैं
जैसे !
जैसे अन्दर से कैसे भी रहो
बाहर से शरीफ दिखो
अच्छा !
हाँ
साथ ही सामने वाले को
चाहे मन से भरपूर कोसो
पर जुबान पर से
सामने वाले की तारीफ़ जी भर बरसो
ऐसा क्या !
और नहीं तो क्या
कुछ और भी बताओ न !
ज़रूर – ज़रूर
जैसे बाबू को पटाना हो तो
चाय का भोग चढाते रहो
बॉस को पटाना हो तो
तारीफों का मलहम लगाते रहो
वाकई ! क्या बात है !
और आगे तो सुनो
जुगाड़ का समय जैसे ही नजदीक दिखे
रोनी सूरत, भिखारियों वाली हालत बना लो
जितने रोने रो सकते हो लिस्ट बना लो
जो बीमारी नहीं हो उसका भी गीत गा लो
परिवार में जो पहले से ही मर चुका हो
उसको दुबारा मार दो
क्या बात है !
अरे ये तो कुछ भी नहीं
-कुछ और भी है क्या ?
क्यों नहीं क्यों नहीं
जुगाड़ एक ऐसा हथियार है
जो कभी फेल नहीं होता
थोड़ी बहुत एक्टिंग
आँखों में घडियालू आंसू
मोबाइल निल बैलेंस
और पेंट की जेब बिलकुल खाली
हो सके तो साथ देने के लिए
किसी रोनी सूरत वाले
दोस्त को कमीशन पर साथ रख लो
बहुत बढ़िया | आगे !
अगर दोस्त से ही जुगाड़ बनाना हो तो
दोस्त से सीधे बात मत करो
फिर किससे !
अरे घर में भाभीजी होती हैं न
जब दोस्त घर पर न हो
घर पर हमला कर दो
रोनी सूरत बनाकर
भाभीजी का दिल जीतो
पता है
औरतें बहुत जल्दी पिघल जाती हैं
वाकई क्या आइडिया है !
अच्छा एक बात बताओ
किसी दुकानदार को टोपी पहनाना हो तो !
कोई बड़ी बात नहीं !
शुरू शुरू में एक दो बार
पेमेंट समय पर कर दो
इससे विस्वास पुख्ता हो जाता है
बाद में जितना हो सके सूखा कर दो
अच्छा बताओ जुगाड़ की जरूरत
कब और कैसे महसूस होती है ?
अरे ये महसूस करने की चीज नहीं
जब भी जेब में लानी हो हरियाली
आँखों में चमक जगाओ
दो चार को पानी पिलाओ
मान गए यार !
अरे यह तो कुछ भी नहीं
ज्यादा फंस जाओ तो
बाहर आने का रास्ता भी है
वो क्या !
कमीशन ज्यादा देकर
बैंक को लोन लेकर चूना लगाओ
पर एक बात का हमेशा ध्यान रखना
वो क्या !
जो बैंक वसूली के लिए
गुंडे पालते हैं
उन बैंकों में
गलती से भी हाथ न डालना
तुम तो कमाल हो यार !
अच्छा एक बात बताओ ?
बोलो
क्या किसी रिश्तेदार को
लपेट सकते हैं क्या ?
अरे बिलकुल नहीं
क्यों !
एक तो इससे समाज में
इज्जत का चूरा होता है
अच्छा और फिर !
और क्या !
रिश्तेदार तो हमेशा ही
कंगाली और रोनी सूरत का
रोना रोने में माहिर होते हैं
हो सके तो
ऐसी जगह हाथ मत डालो
यार ये जुगाड़ है वाकई में बढ़िया चीज !
अरे यार ये तो आजकल का
फंडा है
थोड़ा जियो खुल के जियो
घुट घुटकर क्या जीना
जितने उच्च स्तर की
फंटूसबाजी करोगे
जेल जाने पर उतने ही
अच्छे लेवल की सेवायें
प्रदान की जाती हैं
वाकई !
और नहीं तो क्या
और यदि पुलिस ज्यादा सताए तो ?
यदि पुलिस ज्यादा सताए !
तो दो चार घाव
शरीर पर बना लो
फिर !
फिर क्या
किसी चैनल पर
अपना घायल बदन दिखाओ
और मानवाधिकार आयोग
की शरण में जाओ
यदि इससे भी
काम न बने तो
टेंशन नहीं लेना
क्यों ?
आखरी रास्ता भी है
वो क्या !
ये वो देश है
जहां हर बात का आखिरी इलाज है
मतलब !
कोई भी स्तर का
किसी भी तरह का
काण्ड करके आओ
मेटर को आगे बढाओ
वो कैसे ?
आखिरी चाल पटको
और
राष्ट्रपति के दरबार में
गुहार लगाओ
मानवता के राग गाओ
माफ़ी के लिए कैसिट दुहराओ
सुधरने की कसमें खाओ
आराम से जेल में
जीवन बिताओ
अगर माफ़ी मिल गई तो
बाहर आकर हमको
मिठाई जरूर खिलाओ .