Author: कविता बहार

  • चन्द्र स्तुति- अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    चन्द्र स्तुति- अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    चन्द्र स्तुति- अनिल कुमार गुप्ता "अंजुम"

    चंद्रलोक के तुम हो स्वामी
    हो प्रभु तुम नभ के वासी

    हे मयंक प्रभु हे रजनीश
    हे प्रकृति पोषक हे राकेश

    हे विधु प्रभु सोम हमारे
    हे रजनीश प्रकृति के दुलारे

    हे कलानिधि हे मयंक तुम
    कष्ट हरो प्रभु इंदु हमारे

    हे निशाकर तुम लगते प्यारे
    हे हिमांशु हे शशि हमारे

    हे शशांक तुम देव हमारे
    पुष्पित होते तुमसे हर अंश

    कुदरत पाती तुमसे जीवन
    यूं ही जीवन बरसाना तुम

    ताल सरोवर पुष्ट करो तुम
    शुभ ज्योत्स्ना बिखराओ तुम

    खिला तरंगिणी छ जाओ तुम
    अमृता सुधा हो बरसाते तुम

    कौमुदी चन्द्रिका धरा लाते तुम
    हे चाँद हे चंद्रमा तुम

    नभ में लगते सबसे प्यारे तुम
    पुष्ट करो हम सबका जीवन
    खिल जाए हर इक तन मन

  • परशुराम की प्रतीक्षा -रामधारी सिंह ‘दिनकर’

    परशुराम की प्रतीक्षा -रामधारी सिंह ‘दिनकर’

    परशुराम की प्रतीक्षा -रामधारी सिंह 'दिनकर'


    छोड़ो मत अपनी आन, शीश कट जाए,
    मत झुको अनय पर, भले व्योम फट जाए।


    दो बार नहीं यमराज कण्ठ हरता है,
    मरता है जो, एक ही बार मरता है।


    तुम स्वयं मरण के मुख पर चरण धरो रे।
    जीना है तो मरने से नहीं डरो रे॥


    आँधियाँ नहीं जिसमें उमंग भरती हैं,
    छातियाँ जहाँ संगीनों से डरती हैं।


    शोणित के बदले जहाँ अश्रु बहता है,
    वह देश कभी स्वाधीन नहीं रहता है।


    पकड़ो अयाल, अंधड़ पर उछल चढ़ो रे।
    करिचों पर अपने तन का चाम मढ़ो रे॥


    हैं दुखी मेष, क्यों लहू शेर चखते हैं,
    नाहक इतने क्यों दाँत तेज रखते हैं।


    पर शेर द्रवित हो दशन तोड़ क्यों लेंगे?
    मेषों के हित व्याघ्रता छोड़ क्यों देंगे?


    एक ही पन्थ, तुम भी आघात हनो रे।
    मेषत्व छोड़ मेषो! तुम व्याघ्र बनो रे॥


    जो अड़े, शेर उस नर से डर जाता है,

    है विदित, व्याघ्र को व्याघ्र नहीं खाता है।


    सच पूछो तो अब भी सच यही वचन है।
    सभ्यता क्षीण, बलवान हिंस्र कानन है।


    एक ही पंथ अब भी जग में जीने का,
    अभ्यास करो छागियो! रक्त पीने का।


    वे देश शान्ति के सबसे शत्रु प्रबल हैं,
    जो बहुत बड़े होने पर भी दुर्बल हैं,


    हैं जिनके उदर विशाल, बाँह छोटी है,
    भोंथरे दाँत, पर जीभ बहुत मोटी है।


    औरों के पाले जो अलज पलते हैं,
    अथवा शेरों पर लदे हुए चलते हैं।


    सिंहों पर अपना अतुल भार मत डालो,
    हाथियो! स्वयं अपना तुम बोझ सँभालो।


    यदि लदे फिरे, यों ही तो पछताओगे,
    शव मात्र आप अपना तुम रह जाओगे।


    यह नहीं मात्र अपकीर्ति, अनय की अति है,
    जानें कैसे सहती यह दृश्य प्रकृति है?


    उद्देश्य जन्म का नहीं कीर्ति या धन है,
    सुख नहीं, धर्म भी नहीं, न तो दर्शन है।


    विज्ञान, ज्ञान-बल नहीं, न तो चिन्तन है,
    जीवन का अन्तिम ध्येय स्वयं जीवन है।

    सबसे स्वतंत्र यह रस जो अनघ पियेगा,
    पूरा जीवन केवल वह वीर जियेगा।


    रामधारी सिंह ‘दिनकर’

  • मेरी अभिलाषा है -द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी

    मेरी अभिलाषा है -द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी

    प्रेरणा दायक कविता


    सूरज-सा दमकूँ मैं
    चंदा-सा चमकूँ मैं
    झलमल-झलमल उज्ज्वल
    तारों-सा दमकूँ मैं
    मेरी अभिलाषा है।


    फूलों-सा महकूँ मैं
    विहगों-सा चहकूँ मैं
    गुंजित कर वन-उपवन
    कोयल-सा कुहकूँ मैं
    मेरी अभिलाषा है।


    नभ से निर्मलता लूँ
    शशि से शीतलता लूँ
    धरती से सहनशक्ति
    पर्वत से दृढ़ता लूँ
    मेरी अभिलाषा है।


    मेघों-सा मिट जाऊँ
    सागर-सा लहराऊँ
    सेवा के पथ पर मैं
    सुमनों-सा बिछ जाऊँ
    मेरी अभिलाषा है।


    -द्वारिकाप्रसाद माहेश्वरी

  • सबसे अच्छी सखा किताबें – डीजेन्द्र कुर्रे

    यह विभिन्न श्रेणियों के अर्न्तगत हिंदी, अंग्रेजी तथा अन्य प्रमुख भारतीय भाषाओँ एवं ब्रेल लिपि में पुस्तकें प्रकाशित करता है। यह हर दूसरे वर्ष नई दिल्ली में ‘विश्व पुस्तक मेले’ का आयोजन करता है, जो एशिया और अफ्रीका का सबसे बड़ा पुस्तक मेला है। यह प्रतिवर्ष 14 से 20 नवम्बर तक ‘राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह’ भी मनाता है।

    सबसे अच्छी सखा किताबें कहलाती है

    किताबें
    ~~~~
    हर जिज्ञासु के मन में पाने की चाह है,
    मंजिल तक पहुंचाने का यही एक राह है।

    नया करने का इनमे बनता ख़्वाब है,
    जिंदगी में सबसे अच्छा दोस्त किताब है।

    इसी में कबीर के दोहे एवं संतों की वाणी है,
    इसी मेंअच्छी कविता एवं अच्छी कहानी है।

    किताब ज्ञान का वह अनमोल धरोहर है,
    जैसा भरा जल की तरह अथाह सरोवर है ।

    सामाजिक जीवन जीना बेहतर सिखाती है,
    स्वर्णिम भविष्य गढ़ना हमे बतलाती है।

    विविध संस्कृति की अध्ययन हमे कराती है ,
    सर्वधर्म समभाव की शिक्षा हमे बताती है।

    मन की दुर्गुणों को निकालना सिखाती है,
    सबसे अच्छी सखा किताबें कहलाती है ।
    ~~~~~~~~~~◆◆◆~~~~~~~~


    रचनाकार – डीजेन्द्र कुर्रे “कोहिनूर”
    मिडिल स्कूल पुरुषोत्तमपुर,बसना
    जिला महासमुंद (छ.ग.)
    मो. 8120587822

  • विश्व पुस्तक दिवस पर दोहे

    यह विभिन्न श्रेणियों के अर्न्तगत हिंदी, अंग्रेजी तथा अन्य प्रमुख भारतीय भाषाओँ एवं ब्रेल लिपि में पुस्तकें प्रकाशित करता है। यह हर दूसरे वर्ष नई दिल्ली में ‘विश्व पुस्तक मेले’ का आयोजन करता है, जो एशिया और अफ्रीका का सबसे बड़ा पुस्तक मेला है। यह प्रतिवर्ष 14 से 20 नवम्बर तक ‘राष्ट्रीय पुस्तक सप्ताह’ भी मनाता है।

    पुस्तक

    विश्व पुस्तक दिवस पर दोहे


    ज्ञान,ध्यान,विज्ञान की,जो संपदा अपार।
    ग्रंथों में पूर्वज भरे,प्रेम सहित,आभार।।

    ग्रंथ,नहीं होते सखे,केवल कोरा ज्ञान।
    स्पंदित इनमें युगों,के अमृतमय प्रान।।

    ग्रंथों को पढ़ना नहीं,कर लेना संवाद।
    बोल पड़ेंगे शब्द भी,बनकर हर्ष-विषाद।।

    अद्य गतागत काल के,इसमें कितने चित्र।
    कालजयी स्वर का तुम्हें, अनुभव होगा मित्र।।

    शब्दों का होता नहीं, सब पर एक प्रभाव।
    वैसा उनको ही मिले,जैसा रहे स्वभाव।।

    पुस्तक के संसार में,वे ही होते ग्रंथ ।
    सत्य,शैव,सौंदर्य का,रच जाते जो पंथ।।

    पुष्प म्लान होता नहीं,झरता मधु मकरंद।
    सदा स्नेह सम्मान से,किन्तु रहे अनुबंध।।

    ग्रंथ अनूठे गीत का,नित नव बुनता छंद।
    वहाँ व्याकरण बह गया,फूट पड़ा आनंद ।।



    —- रेखराम साहू —-