Author: कविता बहार

  • धरती माँ तुम पावन थीं – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    नदी

    धरती माँ तुम पावन थीं – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    धरती माँ तुम पावन थीं
    धरती माँ तुम निश्चल थीं
    रूप रंग था सुन्दर पावन
    नदियाँ झरने बहते थे कल – कल
    मोहक पावन यौवन था तेरा
    मन्दाकिनी पावन थी सखी तुम्हारी
    बहती थी निर्मल मलहारी
    इन्द्रपुरी सा था बसता था जीवन
    राकेश ज्योत्स्ना बरसाता था
    रूप तेरा लगता था पावन
    रत्नाकर था तिलक तुम्हारा
    मेघ बने स्नान तुम्हारा
    पंक्षी पशु सभी मस्त थे
    पाकर तेरा निर्मल आँचल
    राम कृष्ण बने साक्ष्य तुम्हारे
    पैर पड़े जिनके थे न्यारे
    चहुँ और जीवन जीवन था
    मानव – मानव सा जीता था
    कोमल स्पर्श से तुमने पाला
    मानिंद स्वर्ग थी छवि तुम्हारी
    आज धरा क्यों डोल रही है
    अस्तित्व को अपने तोल रही है
    पावन गंगा रही न पावन
    धरती रूप न रहा सुहावन
    अम्बर ओले बरसाता है
    सागर सुनामी लाता है
    नदियों में अब रहा न जीवन
    पुष्कर अस्तित्व को रोते हर क्षण
    मानव है मानवता खोता
    संस्कार दूर अन्धकार में सोता
    संस्कृति अब राह भटकती
    देवालयों में अब कुकर्म होता
    चाल धरा की बदल रही है
    अस्तित्व को अपने लड़ रही है
    आओ हम मिल प्रण करें अब
    मातु धरा को स्वर्ग बनायें
    इस पर नवजीवन बिखरायें
    प्रदूषण से रक्षा करें इसकी
    इस पर पावन वृक्ष लगायें
    हरियाली बने इसका गहना
    पावन हो जाए कोना कोना
    न रहे बाढ़ न कोई सुनामी
    धरती माँ की अमर कहानी
    धरती माँ की अमर कहानी

  • गणेश वंदना – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    गणेश
    गणपति

    गणेश वंदना – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    जय गणेश गजबदन विनायक
    एकदंत गणपति गणनायक

    प्रथम पूज्य तुम देव हमारे
    विघ्न हरो प्रभु करो सब काज हमारे

    मूषक तुमको लगते प्यारे
    लम्बोदर गौरी शिव के प्यारे

    सबसे लाडले तुम मात पिता के
    मंगलकर्ता गौरीसुत तुम

    प्रथम पूज्य तुम लगते प्यारे
    मोदक तुमको सबसे प्यारे

    कष्ट हरो सब शिव के दुलारे
    जब भी घन घन घंटा बाजे

    मूषक पर तुम दौड़ के आते
    जय लम्बोदर जय एकदंत

    जय गणपति जय गौरीसुत
    जय गजानन जय विघ्नेश

    ख़त्म हैं करते सारे क्लेश
    जय गजबदन जय विनायक

    जय विघ्नहर्ता जय मंगलकर्ता
    जय गणेश जय जय गणेश |

  • कोरा कागज़ – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    पुस्तक

    कोरा कागज़ – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    कोरा कागज़ हाथ में लिए
    कविता लिखने
    बैठते ही
    मैं विचारों में
    खो सोचने लगा

    कहाँ से शुरू करूँ

    सोचा राजनीति
    पर लिखूं
    मन मसोस कर
    रह गया मैं

    आज के अपराधपूर्ण
    राजनैतिक
    परिवेश जहां
    क्षण – क्षण
    अपराध
    राजनीति पर
    हावी हो रहा है

    मैंने सोचा
    विषय बदलना ही उचित है

    आज की वर्तमान शिक्षा पद्दति
    पर ही कुछ लिखूं

    फिर से
    कलम ने साथ न दिया
    आज की पेशेवर शिक्षा प्रणाली
    जो किपैसा कमाने का
    जरिया बनकर रह गयी है

    मध्यमवर्ग , निम्नवर्ग
    की पहुँच के बाहर हो गयी है
    ऐसी वर्तमान शिक्षा प्रणाली
    पर लिखने को मन न हुआ

    चिंतन की दिशा बदली
    सोचा आज के सामाजिक परिवेश
    पर ही कुछ पंक्तियाँ लिखूं

    पर ऐसा संभव न हुआ
    टूटते परिवार ,
    बिखरते संस्कृति और संस्कार ,
    होता अलगाव , दहेज प्रथा , नारी व्यथा ,
    अतिमहत्वाकांक्षी आशा , रुलाती निराशा ,
    साम्प्रदायिकता एवं – एवं ने
    मुझे कविता लिखने से रोक दिया

    मन की विवशता व लिखने
    की चाह ने मुझे
    फिर से नए विषय पर
    सोचने व लिखने को प्रेरित किया

    सोचा विश्व समुदाय पर
    आधारित कोई कविता रचूँ

    पर विश्व स्तर पर
    बढते आतंकवाद का सामना
    कर रहे
    विश्व समाज ,भूमंडलीकरण
    के सपने को देते आगाज ,
    ग्लोबल वार्मिंग की
    मानव पर पड़ रही मार

    क्षेत्रीय आतंकवाद
    से सुलगता सारा यह संसार
    सारी दुनिया झेल रही
    महंगाई की मार

    इन सारी समस्याओं ने
    विश्व को चिंताओं के
    उस तिराहे पर लाकर खड़ा
    कर दिया है

    जहां से आगे सत्मार्ग
    ढूंढ पाना
    मुश्किल ही नहीं
    असंभव सा है

    मैंने सोचा
    अच्छा हो कि मैं
    अपनी कलम को
    विश्राम दूं
    अपनी चिंतन शक्ति
    को आराम दूं
    किसी नए करिश्मे के
    होने तक ……………..

  • भ्रमित मानस

    भ्रमित मानस

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    सुमन संग वंदन करूं,  प्राण अर्पित राम चरणों में
    मैं दीन-दु:खी जग-मारा,  आया हूं आज चरणों में ।
    मैं मूरख मोह- माया में भरमाया
    छोड़ राम आसरा,  जग-माया को अपनाया।
    लिप्त हुआ मैं,  हाड-मास की काया में
    भ्रमित हुआ मैं,  नव- यौवन की छाया में ।
    मैं अज्ञानी काम-कर्म में लिप्त हुआ
    ना राम भजन ना स्मरण, काम रस में तृप्त हुआ।
    ना किया मैंने तरुणाई में,  राम नाम सुमिरन
    आया बुढ़ापा देख दशा,  बेचैन हुआ ये मन ।
    समझ ना पाया मैं मूरख,  इस भ्रम जाल को
    हुआ दु:खी दर-दर भटका,  जब देखा जंजाल को ।
    तब मुझ अज्ञानी को ज्ञान हुआ,  वृद्धावस्था में राम स्मरण हुआ ।
    तब दौड़ा भागा भागा आया,  कमलनयन राम चरणों में ।।

    कवि- हेमेन्द्र परमार

  • प्रेरणादायक दोहे- हेमेंद्र परमार मनु

    प्रेरणादायक दोहे- हेमेंद्र परमार मनु

    नीच कर्म को त्यागिए, सौम्य  गुण अपनाओ
    सौम्य गुण जगजीवन है,  सौम्य लक्ष्य बनाओ ।।

    गुरु के चरण पखारिए,  करे गुरु की सेवा
    गुरु के आशीर्वाद से,  मिलती रहे मेवा ।।

    मीठी वाणी बोलकर,  सब का चित्त हरिए
    सबके चित्त में बसकर, “मनु” काम निकालिए  ।।

    गुरु को प्रणाम कीजिए,  गुरु मधु का प्याला
    गुरु बिना “मनु” ज्ञान नहीं,  गुरो ज्ञान शिवाला।।

    दोहा छंद-  हेमेंद्र परमार मनु