Author: कविता बहार

  • सद्व्यवहार – राकेश सक्सेना

    सद्व्यवहार – राकेश सक्सेना

    रिश्ते बेजान से
    मित्र अंजान से
    अपने पराये से
    हो जाते हैं,
    जब सितारे
    गर्दिश में हों।।

    दुश्मन दोस्त
    पराए अपने
    और अपने
    सर पे बिठाते हैं
    जब सितारे
    बुलंदी पर हों।।

    मुंह देखी प्रीत
    दुनियां की रीत है
    धन, क्षणिक खुशी
    सद्व्यवहार
    असल जीत है।।

  • घबराना नहीं है तुमको – कविता

    घबराना नहीं है तुमको – कविता

    रास्ता

    घबराना नहीं है तुमको
    आगे है बढते जाना
    रुकना नहीं है तुमको
    आंधियों से है टकराना

    पड़ेगा तुम पर भी
    आधुनिकता का प्रभाव
    एक ही फूँक से उड़ाकर
    आगे है बढते जाना

    मंजिल तुम्हारी चाहत है
    यह सोच कदम बढ़ाना
    घबराना नहीं है तुमको
    आगे है बढते जाना

    रुकना नहीं है तुमको
    आंधियों से है टकराना
    पीछे जो मुड़कर देख लोगे
    खत्म हो जाओगे

    रास्ते टेढ़े मेढे मगर
    उचाईयों को छूते जाना
    घबराना तनिक भी न तुम
    तुम्हे पर्वतों से है टकराना

    आँखों में हो आशा की चमक
    मन में अंतर्विश्वास जगाना
    घबराना नहीं है तुमको
    आगे है बढते जाना

    रुकना नहीं है तुमको
    आंधियों से है टकराना
    आंधियां भी चलेंगी
    पर्वत भी हिलेंगे

    पर कदम तेरे ए बालक
    कदम दर कदम बढ़ेंगे
    चीरकर हवाओं का सीना
    तुझे है पर्वत पार जाना

    थकान से तुझे क्या लेना
    पतझड को सावन बनाना
    घबराना नहीं है तुमको
    आगे है बढते जाना

    रुकना नहीं है तुमको
    आंधियों से है टकराना

    बनकर तू पृथ्वी
    बनकर तू टीपू
    बनकर तू तात्या
    बनकर तू महाराणा
    कर देश अभिमान
    चरम पर छा जाना

    बनकर तू गाँधी
    बनकर तू लक्ष्मी
    बनकर तू रानी
    बनकर तू इंदिरा
    हो देश पर न्योछावर
    शहीद हो जाना

    घबराना नहीं है तुमको
    आगे है बढते जाना
    रुकना नहीं है तुमको
    आंधियों से है टकराना

  • करो जो बात फूलों की – कविता

    करो जो बात फूलों की – कविता

    गुलाब

    करो जो बात फूलों की
    तो काँटों से गिला फिर क्यों

    करो जो बात जीवन की
    तो मृत्यु से फिर डर है क्यों

    करो जो बात दिन की
    तो रात का भय कैसा

    करो जो बात सुबह की
    तो शाम की स्याह का डर कैसा

    करो जो बात चांदनी की
    तो अन्धकार का भय कैसा

    करो जो बात मित्र की
    तो शत्रु का डर कैसा

    करो जो बात समाज की
    तो व्यक्ति का डर कैसा

    करो जो बात फूलों की – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

    करो जो बात प्यार की
    तो घृणा का भय कैसा

    करो जो बात परहित की
    तो स्वयं का दुःख कैसा

    करो जो बात प्रकाश की
    तो अन्धकार का भय कैसा

    साथ हो परमात्मा तो
    जीवात्मा का भय कैसा

    साथ हो ब्रह्मात्मा तो
    मृत्यु का भय कैसा

    जीवन दो धाराओं का नाम है
    एक साथ चलती है
    तो दूसरी सामने से आती है

    जिए इस दम से की
    जीने का मर्म मिल जाए

    धरती पर जीवन ही जीवन खिल जाए

  • बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम – कविता

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम

    परिवार

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी
    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी

    समय पर जागोगे समय पर पढोगे तो अच्छे नम्बरों से पास हो जाओगे
    माता पिता तुम्हारे आशीर्वाद देंगे तुम्हें शहर में अपने तुम जाने जाओगे

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी

    समय पर जागोगे समय पर खेलोगे तो तन और मन प्रसन्न हो जाएगा
    जहां से भी निकलोगे स्मार्ट दिखोगे तुम सारा जहां तुमको प्रिंस बुलाएगा

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी

    अपने बड़ों का सम्मान किया जो तुमने सारा जहां तुमको गले से लगाएगा
    कर्त्तव्य की वादियों में जो उतर जाओगे नाम के आगे टाइटल लग जाएगा

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी

    सत्य की वादियों में जो उतर जाओगे तो जग में तुम्हारा नाम हो जाएगा
    अपने गुरु का सम्मान किया जो तुमने सारा जग तुम्हारे अधीन हो जाएगा

    बात मेरी मान लो मेरे प्यारे बच्चों तुम जिन्दगी तुम्हारी यूं ही संवर जायेगी

  • हंगामा क्यों कर रहे हो तुम – कविता

    हंगामा क्यों कर रहे हो तुम – कविता

    कविता संग्रह
    कविता संग्रह

    छोटी सी बात पर, हंगामा क्यों कर रहे हो तुम
    सियासत तुम्हारा ईमान नहीं , फिर क्यों झगड़ रहे हो तुम

    कुर्बान हुई जवानियों को, कुछ तो सम्मान दो
    राष्ट्र को सर्वोपरि समझो, यूं ही क्यों लड़ रहे हो तुम

    पल – पल जिए , पल – पल मरे जो आजादी के लिए
    उनकी वीरों की कुर्बानियों को , क्यों लजा रहे हो तुम

    भगत सिंग, सुखदेव, बिस्मिल चढ़ गए, फांसी के फंदे पर
    उनकी शहादत पर मगरमच्छी आंसू, क्यों बहा रहे हो तुम

    महसूस नहीं की तुमने , उन जवां दिलों की धड़कन
    क्यों उन वीरों के त्याग को झुठला रहे हो तुम

    हंगामा करना हो गयी है तुम्हारी आदत
    क्यों एक – दूसरे पर आरोप लगा रहे हो तुम

    बात करो देश प्रेम की , बात करो विकास की
    क्यों अपना बहुमूल्य समय गँवा रहे हो तुम