करो जो बात फूलों की – कविता
करो जो बात फूलों की
तो काँटों से गिला फिर क्यों
करो जो बात जीवन की
तो मृत्यु से फिर डर है क्यों
करो जो बात दिन की
तो रात का भय कैसा
करो जो बात सुबह की
तो शाम की स्याह का डर कैसा
करो जो बात चांदनी की
तो अन्धकार का भय कैसा
करो जो बात मित्र की
तो शत्रु का डर कैसा
करो जो बात समाज की
तो व्यक्ति का डर कैसा
करो जो बात फूलों की – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”
करो जो बात प्यार की
तो घृणा का भय कैसा
करो जो बात परहित की
तो स्वयं का दुःख कैसा
करो जो बात प्रकाश की
तो अन्धकार का भय कैसा
साथ हो परमात्मा तो
जीवात्मा का भय कैसा
साथ हो ब्रह्मात्मा तो
मृत्यु का भय कैसा
जीवन दो धाराओं का नाम है
एक साथ चलती है
तो दूसरी सामने से आती है
जिए इस दम से की
जीने का मर्म मिल जाए
धरती पर जीवन ही जीवन खिल जाए