Author: कविता बहार

  • जीविनी युवा रचनाकार-आलोक कौशिक की

    जीविनी युवा रचनाकार

    आलोक कौशिक एक युवा रचनाकार एवं पत्रकार हैं। इनका जन्म 20 जून 1989 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ। इनके पिता का नाम पुण्यानंद ठाकुर एवं माता का नाम सुधा देवी है। मूलतः बिहार राज्य अन्तर्गत अररिया जिले के फतेहपुर गांव निवासी आलोक कौशिक ने स्नातकोत्तर (अंग्रेजी साहित्य) तक की पढाई बेगूसराय (बिहार) से की। तत्पश्चात विभिन्न विभिन्न विद्यालयों में अध्यापन एवं स्वतंत्र पत्रकारिता का कार्य किया। अब तक इनकी सैकड़ों रचनाएं विभिन्न राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। इनका विवाह 24 फरवरी 2016 को बिहार राज्य अन्तर्गत सुपौल जिले के रामपुर गांव की एक शिक्षित सुन्दरी ‘मनीषा कुमारी’ से हुआ। 30 नवंबर 2016 को इन्हें एक पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई। इनकी दो पुस्तकें प्रकाशनाधीन हैं, जो शीघ्र ही पाठकों को उपलब्ध करा दी जायेंगी।

  • कवि पर दोहे

    कवि पर दोहे

    विधी की सृष्टि से बड़ा, कवि रचना संसार।
    षडरस से भी है अधिक,इसका रस भंडार।।1।।


    विधि रचना संसार का,इक दिन होता अंत।
    कवि की रचना का कभी ,कभी न होता अंत।।2।।


    रवि नही पहुँचे जहां,कवी पहुंच ही जाय।
    कवि की रचना सृष्टि में,सीमा कभी न आय।।3।।


    कवी शब्द की शक्ति से, रचता है संसार।
    सुंदर सुंदर शब्द से, रचता काव्य अपार।।4।।


    निर्माता है काव्य का, कवि है रचनाकार।
    करता हैवही सहृदय,गुणअवगुण का सार।।5।।


    कवि की रचना होत है, केवल स्वान्तसुखाय।
    अपने मन के भाव को,अभिव्यक्ति बनाय।।6।।


    कवी कल्पना शक्ति से, रचता है साहित्य।
    इस नश्वर संसार से ,होय अलग ही सत्य।।7।।


    काव्य कवी का कर्म है,होता है कवि धर्म।
    अभिव्यक्ति में सत्यता,यही काव्य का मर्म।।8।।


    होती है यश-लालसा,कवि के मन के माहि।
    भूखा है सम्मान का,और न कछु भी चाहि।।9।।


    कवि पर करती है कृपा, सरस्वती भरपूर।
    उसके आशीर्वाद से , वह पाता है नूर।।10।।

    ©डॉ एन के सेठी

  • सवेरा पर कविता

    सवेरा पर कविता

    सुबह सबेरे दृश्य
    सुबह सबेरे दृश्य

    हुआ सवेरा जानकर , गुंजन करे विहंग।
    चले नहाने सर्वजन,कलकल करती गंग।।


    नित्य सवेरे जो उठे , होता वह नीरोग।
    सुख से वह रहता सदा,करता है सुखभोग।।


    नित्य सवेरे जो जपे, मन से प्रभु का नाम।
    मिट जाते है कष्ट सब ,पाता वह आराम।।


    त्याग करें आलस्य का , जगें सवेरे नित्य।
    शुचि हो प्रभु का नाम ले,करें सभी फिर कृत्य।।


    धन दौलत सुख चाहिए , उठे सवेरे रोज।
    तनमन दोनों स्वस्थ हो,यह ऋषियों की खोज।।

    © डॉ एन के सेठी

  • प्रेम दिवस पर कविता

    प्रेम दिवस पर कविता

    चक्षुओं में मदिरा सी मदहोशी
    मुख पर कुसुम सी कोमलता
    तरूणाई जैसे उफनती तरंगिणी
    उर में मिलन की व्याकुलता

    जवां जिस्म की भीनी खुशबू
    कमरे का एकांत वातावरण
    प्रेम-पुलक होने लगा अंगों में
    जब हुआ परस्पर प्रेमालिंगन

    डूब गया तन प्रेम-पयोधि में
    तीव्र हो उठा हृदय स्पंदन
    अंकित है स्मृति पटल पर
    प्रेम दिवस पर प्रथम मिलन

    ………………..

    :-आलोक कौशिक

  • प्रेमगीत

    प्रेमगीत

    प्रेमी युगल
    प्रेमी युगल

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !
    वो पल वो क्षण
    हमारे नयनों का मिलन
    जब था मूक मेरा जीवन
    तब हुआ था तेरा आगमन
    कलियों में हुआ प्रस्फुटन
    भंवरों ने किया गुंजन

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !
    तेरा रूप तेरा यौवन
    जैसे खिला हुआ चमन
    चांद सा रौशन आनन
    चांदनी में नहाया बदन
    झूम के बरसा सावन
    फूलों में हुआ परागण

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !
    तेरे पायल तेरे कंगन
    कभी छन-छन कभी खन-खन
    पड़ें जहां तेरे चरण
    खिल जायें वहां उपवन
    तू शास्त्रों का श्रवण
    तू मंत्रों का उच्चारण

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !
    तेरा छुअन तेरा आलिंगन
    जैसे चंदन का चानन
    दे कर तुझे वचन
    बन गया तेरा सजन
    तेरे संग लगा के लगन
    तेरे प्यार में हुआ मगन

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !
    वो अधरों का चुंबन
    हमारे सांसों का संलयन
    तेरे जिस्म की तपन
    मेरे तन की अगन
    अजब सा छाया सम्मोहन
    हम भूल गये त्रिभुवन

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !
    तेरे मन का समर्पण
    मेरे प्यार का पागलपन
    सुनके तेरा सुमिरन
    मैंने दे दी धड़कन
    प्यार बन गया पूजन
    बना हर गीत भजन

    है मुझे स्मरण… जाने जाना जानेमन !

    :- आलोक कौशिक