सूरज पर कविता

मीत यामिनी ढलना तय है,
कब लग पाया ताला है।
*चीर तिमिर की छाती को अब,*
*सूरज उगने वाला है।।*
आशाओं के दीप जले नित,
विश्वासों की छाँया मे।
हिम्मत पौरुष भरे हुए है,
सुप्त जगे हर काया में।
जन मन में संगीत सजे है,
दिल में मान शिवाला है।
चीर तिमिर…………. ।
हर मानव है मस्तक धारी,
जिसमें ज्ञान भरा होता।
जागृत करना है बस मस्तक,
सागर तल जैसे गोता।
ढूँढ खोज कर रत्न जुटाने,
बने शुभ्र मणि माला है।
चीर ………………….।
सत्ता शासन सरकारों मे,
जनहित बोध जगाना है।
रीत बुराई भ्रष्टाचारी,
सबको दूर भगाना है।
मिले सभी अधिकार प्रजा को,
दोनो समय निवाला है।
चीर तिमिर……………..।
हम भी निज कर्तव्य निभाएँ,
बालक शिक्षित व्यवहारी।
देश धरा मर्यादा पालें,
सत्य आचरण हितकारी।
शोध परिश्रम करना होगा,
लाना हमे उजाला है।
चीर तिमिर …………..।
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✍©
बाबू लाल शर्मा बौहरा
सिकंदरा,दौसा, राजस्थान
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