Author: कविता बहार

  • गुरू पर कुण्डलियां -मदन सिंह शेखावत

    महर्षि वेद व्यासजी का जन्म आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा को ही हुआ था, इसलिए भारत के सब लोग इस पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा के रूप में मनाते हैं। जैसे ज्ञान सागर के रचयिता व्यास जी जैसे विद्वान् और ज्ञानी कहाँ मिलते हैं। व्यास जी ने उस युग में इन पवित्र वेदों की रचना की जब शिक्षा के नाम पर देश शून्य ही था। गुरु के रूप में उन्होंने संसार को जो ज्ञान दिया वह दिव्य है। उन्होंने ही वेदों का ‘ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और अथर्ववेद’ के रूप में विधिवत् वर्गीकरण किया। ये वेद हमारी संस्कृति की अमूल्य धरोहर हैं

    गुरू पर कुण्डलियां

    गुरु शिष्य
    आषाढ़ शुक्ल गुरु पूर्णिमा Ashadh Shukla Guru Poornima

    गुरू कुम्हार एक से,घड़ घड़ काडे खोट।
    सुन्दर रचना के लिए,करे चोट पर चोट।
    करे चोट पर चोट,शिष्य को खूब तपाये।
    नेकी पाठ पढाय ,सत्य की राह बताये।
    कहै मदन कविराय,बातपर कर अमल शुरू।
    होगा भव से पार, मिल जाये पूरा गुरू।।

    मदन सिंह शेखावत ढोढसर

  • विरह पर दोहे -बाबू लाल शर्मा

    विरह पर दोहे

    सूरज उत्तर पथ चले,शीत कोप हो अंत।
    पात पके पीले पड़े, आया मान बसंत।।

    फसल सुनहरी हो रही, उपजे कीट अनंत।
    नव पल्लव सौगात से,स्वागत प्रीत बसंत।।

    बाट निहारे नित्य ही, अब तो आवै कंत।
    कोयल सी कूजे निशा,ज्यों ऋतुराज बसंत।।

    वस्त्र हीन तरुवर खड़े,जैसे तपसी संत।
    कामदेव सर बींधते,मन मदमस्त बसंत।।

    मौसम ले अंगड़ाइयाँ,दामिनि गूँजि दिगंत।
    मेघा तो बरसे कहीं, विरहा सोच बसंत।।

    नव कलियाँ खिलने लगे,आवे भ्रमर तुरंत।
    विरहन मन बेचैन है, आओ पिया बसंत।।

    सिया सलौने गात है, मारे चोंच जयंत।
    राम बनो रक्षा करो,प्रीतम काल बसंत।।

    प्रीतम पाती प्रेमरस, अक्षर जोड़ अजंत।
    विरहा लिखती लेखनी,आओ कंत बसंत।।

    प्रेम पत्रिका लिख रही, पढ़ लेना श्रीमंत।
    भाव समझ आना पिया,चाहूँ मेल बसंत।।

    जैसी उपजे सो लिखी, प्रत्यय संधि सुबन्त।
    पिया मिलन की आस में,भटके भाव बसंत।।

    परदेशी पंछी यहाँ, करे केलि हेमंत।
    मन मेरा भी बावरा, चाहे मिलन बसंत।।

    कुरजाँ ,सारस, देखती, कोयल पीव रटन्त।
    मन मेरा बिलखे पिया, चुभते तीर बसन्त।।

    बौराए वन बाग है, अमराई जीवंत।
    सूनी सेज निहारती ,बैरिन रात बसंत।।

    मादकता चहूँ ओर है, कैसे बनू सुमंत।
    पिया बिना बेचैन मन, कैसे कटे बसंत।।

    काम देव बिन सैन्य ही, करे करोड़ो हंत।
    फिर भी मन माने नहीं, स्वागत करे बसंत।।

    मैना कोयल बावरे, मोर हुए सामंत।
    तितली भँवरे मद भरे, गाते राग बसंत।।

    कविमन लिखता बावरा,शारद सुमिर पदंत।
    प्राकृत में जो देखते,लिखती कलम बसन्त।।

    शारद सुत कविता गढ़े, लिखते गीत गढंत।
    मन विचलित ठहरे नहीं, रमता फाग बसंत।।

    गरल सने सर काम के,व्यापे संत असंत।
    दोहे लिख ऋतु राज के,कैसे बचूँ बसंत।।

    कामदेव का राज है, भले बुद्धि गजदंत।
    पलकों में पिय छवि बसे,नैन न चैन बसंत।।

    ऋतु राजा की शान में,मदन भटकते पंत।
    फाग राग ढप चंग से, सजते गीत बसंत।।

    मन मृग तृष्णा रोकती,अक्षर लगा हलन्त्।
    आँसू रोकूँ नयन के, आजा पिया बसंत।।

    चाहूँ प्रीतम कुशलता,अर्ज करूँ भगवंत।
    भादौ से दर्शन नहीं, अब तो मिले बसंत।।

    ईश्वर से अरदास है, प्रीतम हो यशवंत।
    नित उठ मैं पूजा करूँ, देखूँ बाट बसंत।।

    फागुन में साजन मिले,खुशियाँ हो अत्यंत।
    होली मने गुलाल से, गाऊँ फाग बसंत।।

    मैं परछाई आपकी,आप पिया कुलवंत।
    विरहा मन माने नहीं, करता याद बसंत।।

    शकुन्तला को याद कर,याद करूँ दुष्यंत।
    भूल कहीं जाना नहीं, उमड़े प्रेम बसंत।।

    रामायण गीता पढ़ी,और पढ़े सद् ग्रन्थ।
    ढाई अक्षर प्रेम के, मिलते माह बसंत।।

    प्रीतम हो परदेश में, आवे कौन सुपंथ।
    पथ पूजन कर आरती,मै तैयार बसंत।।

    नारी के सम्मान के, मुद्दे उठे ज्वलंत।
    कंत बिना क्या मान हो,दे संदेश बसंत।।

    प्रीतम चाहूँ प्रीत मै, सात जनम पर्यन्त।
    नेह सने दोहे लिखूँ ,साजन चाह बसंत।।

    बाबू लाल शर्मा, “बौहरा”
    सिकंदरा,दौसा,राजस्थान

  • गाँधीजी पर कविता – बाबू लाल शर्मा

    गाँधीजी पर कविता – बाबू लाल शर्मा

    गाँधीजी पर कविता

    mahatma gandhi

    भारत ने थी ली पहन, गुलामियत जंजीर।
    थी अंग्रेज़ी क्रूरता, मरे वतन के वीर।
    हाल हुए बेहाल जब, कुचले जन आक्रोश।
    देख दशा व्याकुल हुए, गाँधी वर मतिधीर।

    काले पानी की सजा, फाँसी हाँसी खेल।
    गोली गाली साथ ही , भर देते थे जेल।
    देशी राजा अधिक तर, मौज करे मदमस्त।
    गाँधी ने आवाज दी, कर खादी से मेल।

    याद करे जब देश वह, जलियाँवाला बाग।
    कायर डायर क्रूर ने, खेला खूनी फाग।
    अंग्रेजों की दासता, जीना पशुता तुल्य।
    छेड़ा मोहन दास ने, सत्याग्रह का राग।

    मोहन, मोहन दास बन, मानो जन्मे देश।
    पढ़लिख बने वकीलजी, गुजराती परिवेश।
    भूले आप भविष्य निज, देख देश की पीर।
    गाँधी के दिल मे लगी, गरल गुलामी ठेस।

    देखे मोहन दास ने, साहस ऊधम वीर।
    भगत सिंह से पूत भी, गुरू गोखले धीर।
    शेखर बिस्मिल से मिले, बने विचार कठोर।
    गाँधी संकल्पित हुए, मिटे गुलामी पीर।

    बापू के आदर्श थे, लाल बाल अरु पाल।
    आजादी हित अग्रणी, भारत माँ के लाल।
    फाँसी जिनको भी मिली, काले पानी मौत।
    गाँधी सबको याद कर, करते मनो मलाल।

    अफ्रीका मे वे बने, आजादी के दूत।
    लौटे अपने देश फिर, मात भारती पूत।
    किया स्वदेशी जागरण, परदेशी दुत्कार।
    गाँधी ने चरखा चला, काते तकली सूत।

    अंग्रेजों की क्रूरता, पीड़ित लख निज देश।
    बैरिस्टर हित देश के, पहने खादी वेश।
    सामाजिक सद्भाव के, दिए सत्य पैगाम।
    ईश्वर सम अल्लाह है, सम रहमान गणेश।

    कूद पड़े मैदान में, चाह स्वराज स्वदेश।
    कटे दासता बेड़ियाँ, हो स्वतंत्र परिवेश।
    भारत छोड़ो नाद को, करते रहे बुलंद।
    गाँधी गाँधी कह रहा, खादी बन संदेश।

    सत्य अहिंसा शस्त्र से, करते नित्य विरोध।
    जनता को ले साथ में,किए विविध अवरोध।
    नाकों में दम कर उन्हे, करते नित मजबूर।
    गाँधी बिन हथियार के, लड़े करे कब क्रोध।

    सत्याग्रह के साथ ही, असहयोग हथियार।
    सविनय वे करते सदा, नाकों दम सरकार।
    व्रत उपवासी आमरण, सत्य अहिंसा ठान।
    गाँधी नित सरकार पर, करते नूतन वार।

    गोल मेज मे भारती, रखे पक्ष निज देश।
    भारत का वो लाडला, गाँधी साधू वेश।
    हुआ चकित इंग्लैण्ड भी, बापू कर्म प्रधान।
    गाँधी भारत के लिए, सहते भारी क्लेश।

    गोरे काले भेद का, करते सदा विरोध।
    खादी चरखे कात कर, किए स्वदेशी शोध।
    रोजगार सब को मिले, बढ़े वतन उद्योग।
    गाँधी थे अंग्रेज हित, कदम कदम अवरोध।

    मान महात्मा का दिया, आजादी अरमान।
    बापू अपने देश का, लौटाएँ सम्मान।
    देश भक्त करते सदा, बापू का जयकार।
    गाँधी की आवाज पर, धरते सब जन कान।

    गाँधी की आँधी चली, हुए फिरंगी ध्वस्त।
    दी आजादी देश को, पन्द्रह माह अगस्त।
    खुशी मन सब देश में, भाया नव त्यौहार।
    गाँधी ने हथियार बिन, किये विदेशी पस्त।

    बँटवारे के खेल में, भारत पाकिस्तान।
    बापू जी के हाथ था, खंडित हिन्दुस्तान।
    हुए पलायन लड़ पड़े, हिन्दू मुस्लिम भ्रात।
    गाँधी ने कर शांत तब, दाव लगाई ज़ान।

    आजादी खुशियाँ मनी, बापू का सम्मान।
    राष्ट्रपिता जनता कहे, बापू हुए महान।
    खुशियाँ देखी देश में, बदला सब परिवेश।
    गाँधी भारत देश में, जन्मे बन वरदान।

    तीस जनवरी को हुआ, उनका तन निर्वाण।
    सभा प्रार्थना में तजे, गाँधी जी ने प्राण।
    शोक समाया देश में, झुके करोड़ों शीश।
    गाँधी तुम बिन देश के, कौन करेगा त्राण।

    दिवस शहीदी मानकर,रखते हम सब मौन।
    बापू तेरे देश का , अब रखवाला कौन।
    कीमत जानेंगे नही, आजादी का भाव।
    गाँधी तुम बिन हो गये, सूने भारत भौन।

    महा पुरुष माने सभी, देश विदेशी गान।
    मानव मन होगा सदा, बापू का अरमान।
    याद रखें नव पीढ़ियाँ, मान तेज तप पुंज।
    गाँधी सा जन्मे पुन: , भारत भाग्य महान।

    बापू को करते नमन,अब तो सकल ज़हान।
    धन्य भाग्य माँ भारती, गाँधी धीर महान।
    राजघाट में सो रहे, हुए देव सम तुल्य।
    गाँधी भारत देश की, है तुमसे पहचान।

    शर्मा बाबू लाल ने, लिख दोहे बाईस।
    बापू को अर्पित किये, नित्य नवाऊँ शीश।
    रघुपति राघव गान से, गुंजित सब परिवेश।
    गाँधी जी सूने लगें, अब वे तीनों कीस।


    बाबू लाल शर्मा,”बौहरा”
    सिकंदरा,दौसा,राजस्थान

  • बसंत पंचमी पर कविता

    बसंत पंचमी पर कविता

    मदमस्त    चमन

    अलमस्त  पवन

    मिल रहे  हैं देखो,

    पाकर  सूनापन।

    उड़ता है सौरभ,

    बिखरता पराग।

    रंग बिरंगा सजे

    मनहर ये बाग।

    लोभी ये मधुकर

    फूलों पे है नजर

    गीला कर चाहता

    निज शुष्क अधर।

    सजती है धरती

    निर्मल है आकाश।

    पंछी का कलरव,

    अब बसंत पास।

  • बीते समय पर कविता

    बीते समय पर कविता

    घड़ी बदलाव

    हम रहो के राही है
    भटक जाए इतना आसान नहीं
    इतना रहो में गुमार नही
    हम से टकरा जाए इतना हकूमत में साहस नही
    हो जाता है
    चिर हरण जैसे जब अपने घर ही ताक नही
    अपने बच्चे ही हाथ नही
    दुनिया में खूब कमाई दौलत
    पर करता रहा में कोई राम राम नही
    चलना आता है
    पर करता है जमाना काट यहि
    इतना किसी में दम नही
    हमारे सामने कोई टिका नही
    चिंता के इस दौर में
    आज भी हम
    किसी के गुलाम नही
    आईडिया हमारे दर के सही
    या यू कह दे हमारे गुलाम यहि
    लेकिन जमाने में अभी हमारा निशान नही
    होगा जल्द कोशिस हमारी
    करेगी कोई काम सही

    -सुरेंद्र कल्याण बुटाना
    Surender Kalyan Butana