Author: कविता बहार

  • बारी के पताल-महेन्द्र देवांगन माटी

    बारी के पताल

    वाह रे हमर बारी के पताल ।
    ते दिखथस सुघ्घर लाल लाल ।।

    गरीब अमीर दुनो तोला भाथे ।
    झोला मे भर भरके तोला लाथे ।।

    तोर बिना कुछु साग ह नइ मिठाये ।
    सलाद बनाके तोला भात मे खाये ।।

    धनिया मिरची मिलाके चटनी बनाथे।
    रोटी अऊ बासी मे चाट चाट के खाथे।।

    वाह रे हमर बारी के पताल।
    ते दिखथस सुघ्घर लाल लाल ।।


    *महेन्द्र देवांगन “माटी”* ✍
    *पंडरिया छत्तीसगढ़*
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  • शरदपूर्णिमा पर कविता-  डा. नीलम

    शरदपूर्णिमा पर कविता

    ओढ़ के चादर कोहरे की
    सूरज घर से निकला था
    कर फैला कर थोड़ी धूप
    देने की, दिन भर कोशिश करता रहा

    सांझ ने जब दामन फैलाया
    निराश होकर सूरज फिर लौट गया
    कोशिश फिर चाँद-सितारों ने भी की थी
    पर कोहरे की चादर वैसी ही बिछी रही

    कोहरे की चादर ,पर ..बहुत गाड़ी थी
    हवाओं ने भी तीखी शमशीर चलाई थी
    चादर को लेकिन खरोंच तक ना आई थी

    तुषारापात ने भी घात किया
    बस छन छन मोती ही गिरा
    भेद सका ना चादर कोई
    *कोहरे की चादर* ज्यों की त्यों तनी रही ।

    डा. नीलम

  • मौत पर कविता: जिंदगी का पड़ाव या कुदरत का हसीन तोहफा- डा.नीलम

    मौत पर कविता

    मौत तू जिंदगी का पड़ाव है या
    है कुदरत का हसीन तोहफा

    है आगोश तेरा बहुत ही शांत -शीतल
    जो हैं दुनियां से नाराज़ उन्हें है मिलता सुकून तुझसे है

    तू कहाँ कब किसी के पास जाती है
    हर किसी को तू अपने पास बुलाती है

    कभी तू मेहरबां होती है तो
    नींद में ही ले जाती है हजारों को
    कभी रुठ जाए तो, महीनों पैरों घिसटवाती है

    पर.. कटु जब हो जाए तो
    जिंदगी जीने नहीं देती आराम से
    मेहरबां हो तो एक झटके में आगोश में ले लेती है

    बेगुनाह माँगते पनाह तुझसे
    देशभक्त ले हाथ जश्न मनाते हैं

    तेरे मकाम कहाँ -कहाँ नहीं है
    हर सूं तू ही तू नज़र आती है

    कौन सी राह है जहाँ तू नहीं मिलती है
    जल, थल, आसमां, अग्नि, वायु ,हर सूं तू ही तू दिखाई दे

    काल है तू महाकाल की
    हर घड़ी तेरा बजर बजता है।

    डा. नीलम
  • लिखना पढ़ना पर कविता -अंचल

    लिखना पढ़ना पर कविता

    पढ़ना लिखना चाहिए,
    जीवन में जी मस्त।
    शिक्षित करते हैं सभी,
    संकट को जी पस्त।।
    संकट को जी पस्त,
    होत हैं भारी ताकत।
    डरते कभी न भाय,
    भगे जी संकट सामत।।
    कह कवि अंचल मित्र,
    कभी मत डर को गढ़ना।
    मंजिल पाना सत्य,
    सदा सब लिखना पढ़ना।।

    अंचल

  • मतदाता पर कुण्डिलयाँ

    मतदाता पर कुण्डिलयाँ??

    भाग्य विधाता

    भाग्य विधाता देश का, स्वयं आप श्रीमान।
    मिला वोट अधिकार है, करिये जी मतदान।।
    करिये जी मतदान, एक मत पड़ता भारी।
    सभी छोड़कर काम, प्रथम यह जिम्मेदारी।।
    कहे अमित यह आज, नाम जिनका मतदाता।
    मिला श्रेष्ठ सौभाग्य, आप ही भाग्य विधाता।।

    मतदाता

    मतदाता मत डालिए, लोकतंत्र की शान।
    वोट डालना आपको, शक्ति स्वयं पहचान।।
    शक्ति स्वयं पहचान, हृदय में अलख जगाएँ।
    चीख रहा जनतंत्र, राष्ट्र हित कर्म निभाएँ।।
    कहे अमित कविराज, देशहित के अनुयाता।
    शत प्रतिशत मतदान, कीजिए अब मतदाता।।

    कन्हैया साहू ‘अमित’✍