अपराधी इंसान पर कविता- R R Sahu
अपराधी इंसान पर कविता सभी चाहते प्यार हैं,राह मगर हैं भिन्न।एक झपटकर,दूसरा तप करके अविछिन्न।। आशय चाल-चरित्र का,हमने माना रूढ़।इसीलिए हम हो गए,किं कर्तव्य विमूढ़।। स्वाभाविक गुण-दोष से,बना हुआ इंसान।वही आग दीपक कहीं,फूँके कहीं मकान।। जन्मजात होता नहीं,अपराधी इंसान।हालातों से…