Author: कविता बहार

  • मैं नन्हा दीपक हूँ -डाँ. आदेश कुमार

    मैं नन्हा दीपक हूँ

    मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।

    मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।

    निपट अकेला कोई होता ।
    चिंताओ में जब है खोता ।।
    रक्षक बन जाता हूँ उसका ,
    मैं अपलक जगता रहता हूँ ।।
    मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।
    मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।


    होता दो दिल का बंधन जब ।
    जुड़ना चाहें दो जीवन जब ।।
    सौगंध दिला के जन्मों की ,
    मैं साक्षी उनका बनता हूँ ।।
    मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।
    मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।


    आलोकित करता कुंज कुंज ।
    आलोक पुत्र ,आलोक पुन्ज ।।
    कर देता हूँ सब कुछ अर्पण ,
    मैं शीश कटा कर हँसता हूँ ।।
    मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।
    मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।


    जहाँ प्रभो का मान रहेगा ।
    इक मेरा भी स्थान रहेगा ।।
    मैं प्रभु मंदिर की आरति हूँ ,
    मैं पद पंकज में जलता हूँ ।।
    मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।
    मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।


    डाँ. आदेश कुमार पंकज
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  • स्नेह का दीप पर कविता -डॉ एन के सेठी

    स्नेह का दीप पर कविता

    जगमग हो जाए हर कोना
    हरेक चीज लगे अब सोना
    हर दुख का हो जाय शमन
    भर जाए खुशियों से दामन
    अंधियारा जग से मिट जाए
    एक स्नेह का दीप जलाए।।
              ???
    विश्व में शांति का प्रसार हो
    प्रेम और सद्भाव अपार हो
    घर घर दीप करे उजियारा
    बढ जायआपसी भाईचारा
    चहुँ और चेतना फैल जाए
    एक स्नेह का दीप जलाए।।
               ???
    मन का हर कोना साफ करें
    हम  इक दूजे को माफ करें
    न भय आतंक का काम हो
    अधर्म का  काम  तमाम हो
    मिलकर हमअज्ञान मिटाएं
    एक स्नेह का दीप जलाए।।
              ???
    कर्म दीप करें  प्रज्ज्वलित
    जनजन का मन हो हर्षित
    हो  जाए  सफल हर काज
    दीपोत्सव का करें आगाज
    धर्मध्वजाअब सदा लहराए
    एक स्नेह का दीप जलाए।।
              ???
    अहंकार का हम करें विनाश
    अंतस  में फैले ज्ञान प्रकाश
    मिट जाए यह तम घनघोर
    सुख समृद्धि फैले चहुँ और
    हिय में प्रेम सुधारस बरसाए
    एक स्नेह का दीप जलाए।।

    ???????

          ©डॉ एन के सेठी
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  • त्यौहार पर कविता-तेरस कैवर्त्य ‘आंसू’

    त्यौहार पर कविता

    आया कार्तिक मास अब, साफ करें घर द्वार।
    रंग बिरंगे लग रहे, आया है त्यौहार।।१।।

    गली गली में धूम है , जलती दीप कतार।
    सभी मनाये साथ में, दीवाली त्यौहार।।२।।

    श्रद्धा सुमन चढ़ा करें, पूजे लक्ष्मी मान।
    मेवा घर घर बांटते , नया पहन परिधान।।३।।

    सुमत सहज ही बांध के, आये जब त्यौहार।
    महक दहक बहती हवा, देख खुशी परिवार।।४।।

    बैर भाव को छोड़ के, निज मन सुर कर गान।
    दया धरम के राह चल, तभी मिलेगा मान।।५।।

    तेरस कैवर्त्य ‘आंसू’ सोनाडुला बिलाईगढ, जिला – बलौदाबाजर (छ. ग.)
                  
               
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  • इस दिवाली कुछ ऐसा कर देना -शैलेन्द्र चेलक

    इस दिवाली कुछ ऐसा कर देना

    हे ऐश्वर्य की देवी ! 
    कल्याणकारिणी तुझे प्रणाम !
    एक निवेदन मेरी सुन लो ,
    लाया हूं विकट पैगाम ,

    तुझसे कोई अछूता नहीं ,
    फिर गरीबो को क्यूं छूता नही ,
    तेरी महिमा अपरंपार ,
    तेरी चरणों मे समृद्धि भंडार ,

    अमीरों के घरों में बिन बुलाए आती ,
    गरीबो को भूल जाती ? 
    ध्यान धरा तेरी है पर ,
    नंगा तन क्षुधा अकुलाते बच्चे ,
    रो रहे विवश ,
    क्यूं तुम्हें लगते अच्छे ?
     शायद वे तुम्हें वैसे ही पसंद है ,
    तभी इनकी संख्या बढ़ते जाते ,
    अभावग्रस्त बिलखती माता ,
    रो -रोकर तुझे खुश नहीं कर पाते ,

    है दयामयी ! हे करुणामयी ! 
    इस दिवाली कुछ ऐसा कर देना ,
    इन जैसों का भी घर भर देना ,
    अधनंगे घूमते थक गए है ,
    झिड़कियों से वे पक गए हैं ,
    मेरा पैगाम तुम सुन लेना ,
    उन्हें अब तक की सारी दीवाली देना ,

              – शैलेन्द्र चेलक –
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  • दीपक हो उदास-माधवी गणवीर

    दीपक हो उदास

    गर दीपक हो उदास 
    तो दीप कैसे जलाऊ……
    उन्यासी बरस की आजादी का
    क्या हाल हुआ 
    उनकी बर्बादी का,
    सत्ता के लुटेरे देखे,
    बेरोजगारी की बार झेले
    भष्ट्राचारी, लाचारी,
    भुखमरी का,
    क्या अब राग सुनाऊ…..
    दीप कैसे जलाऊ।
    अपने ही करते आए
    अपनो पर आहत,
    लाख करू जतन 
    मिलती नही राहत
    कैसे बचेगा देश विभीषणों 
    की चाल से,
    बच जायेंगे दुश्मनों से,
    पर क्या बचेंगे जयचंदो की चाल से।
    कपटी, बेईमानो,
    धोखेबाजो को कैसे
    पार लगाऊ……
    दीप कैसे जलाऊ……..
    पर…. टूटी मन की आश नही
    खोया मन का विश्वास नही
    नव प्रभात, नव पल्लव का
    चन्द्रोदय हम खिलाएंगे,
    होगा नूतन फिर उजियारा,
    भागेंगा कपटी अंधियारा,
    छल, कपट और राग द्वेष
    दूर हो ऐसी अलख जगाऊँ
    फिर मैं दीप जलाऊ।

    माधवी गणवीर
    राष्ट्रपति पुरस्कृत शिक्षिका
    राजनादगांव
    Mo n.7999795542
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