मैं नन्हा दीपक हूँ
मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।
मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।
निपट अकेला कोई होता ।
चिंताओ में जब है खोता ।।
रक्षक बन जाता हूँ उसका ,
मैं अपलक जगता रहता हूँ ।।
मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।
मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।
होता दो दिल का बंधन जब ।
जुड़ना चाहें दो जीवन जब ।।
सौगंध दिला के जन्मों की ,
मैं साक्षी उनका बनता हूँ ।।
मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।
मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।
आलोकित करता कुंज कुंज ।
आलोक पुत्र ,आलोक पुन्ज ।।
कर देता हूँ सब कुछ अर्पण ,
मैं शीश कटा कर हँसता हूँ ।।
मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।
मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।
जहाँ प्रभो का मान रहेगा ।
इक मेरा भी स्थान रहेगा ।।
मैं प्रभु मंदिर की आरति हूँ ,
मैं पद पंकज में जलता हूँ ।।
मैं जग का नन्हा दीपक हूँ ।।
मैं निर्भय होकर जलता हूँ ।।
डाँ. आदेश कुमार पंकज
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद