मच्छर -अजस्र(दुर्गेश मेघवाल)
एक हादसा कल रात हो गया,
हो बीमार मैं पस्त पड़ा।
मच्छर एक ललकारते हुए,
तान के सीना समक्ष खड़ा।
मच्छर हूँ मैं ,मुझसे तुम सब,
कब तक यूँ बच पाओगे ।
चौबीस घण्टे मैं ड्यूटी करता
तुम आठ घण्टे सो जाओगे।
मेरे साथियों संग मैंने मिलकर ,
ऐसा षड्यंत्र रचाया है ।
आने वाले दस वर्षो में ,
बस करना मानव- सफाया है।
बड़ी बात भले लगती हो ,
देखो तुम पिछला इतिहास।
गुजरे दस सालों को खंगालो ,
होगा तुमको फिर एहसास ।
आधा काम परिपूर्ण हो चूका ,
मानव अब कमजोर बना ।
दो चार दाव जो और लगे तो,
काम हमारा झट से बना ।
सोए हुए तो जग भी जाएँ,
जागे हुए जागेंगे क्या ।
सोते हुए जो मौत आ गयी,
मौत से फिर भागेंगें क्या ।
काम हमारा सोते हुओं को ,
रोग गिफ्ट करना ही तो है।
दो दिन तुम अब भले ही बच लो,
आखिर में मरना ही तो है ।
गरीब घर या महल चौबारे,
सब जगह हमारा राज हुआ।
जीत सको तो जीत लो बाजी ,
कल तो कभी न आज हुआ।
छोटा हूँ पर ताली तुमसे ,
कई बार बजवा भी चुका ।
तुमने लाख विरोध किया पर ,
रोके तुम्हारे कब मैं हूँ रुका।
मुझे मसलने के ख्वाब देखते,
ख्वाब को मैने मसल दिया।
बच्चा ,बूढ़ा और जवान हो,
मेरा काटा बस मचल दिया।
अभी तो कुछ ही दर्द दिया है,
कुल का साथ है मिला हुआ।
चार अस्त्र (मलेरिया,डेंगू,चिकनगुनिया,जीका )ही अभी चले है,
आयुध खजाना भरा हुआ ।
अभी हमारे शोध चल रहे,
नए-नए हथियारों पर।
मच्छर कुल का राज चलेगा,
मानव के संसारों पर।
समय अभी है अब भी जो तुम,
मच्छर मान भुलाओगे।
आने वाले दस वर्षों में ,
तुम मिट्टी में मिल जाओगे।
नाम भले मौसम का ले लो ,
आखिर तो काम हमारा है ।
मौसम जब-जब करवट लेता,
मिलता हमको सहारा है ।
तुम्हीं हो कहते ,शत्रुजनों को ,
कमतर नहीं आंका करते ।
शत्रु भी फिर मुझ जैसा हो,
डरकर नहीं भागा करते ।
युद्ध करो मैं समक्ष खड़ा हूँ ,
जीत सको तो जीत भी लो।
आज तो बस कमजोर किया,
कल के लिए भयभीत भी लो।
मक्खी बहन जो कर ना पाई,
काम हमें वो करना ही है ।
वर्षों से तैयारी हमारी ,
युद्ध हमें अब लड़ना ही है ।
जीत हमारी निश्चित ही है,
तुम चेत यदि न पाओगे ।
अकाल मौत जो मर भी चुके है
क्या उनको उत्तर दे पाओगे।
आँख मिलाना दूभर होगा,
उन नन्हें-नन्हें लालों से ।
जीत सके न मुझसे गर तुम,
क्या उनको सिखलाओगे?
सुन कर उसकी धमकी भारी,
मन भीतर तक कांप गया।
उन बातों में गहरा दम था,
मजबूत इरादे मैं भांप गया ।
मैं भी बोला,”सुन बे मच्छर ,
तुझ पर पार हम पा लेंगे।
हैजा ,प्लेग ,पोलियो को फटका,
तुझको भी बतला देंगे ।
साफ-सफाई उपचारों से ,
मक्खी को भी हराया है ।
पर तु थोड़ा उससे बढ़कर,
अब करना तेरा सफाया है।
माना कि आयुध तेरे अभी ,
मानव क्षति के कारक है।
लेकिन फिर भी प्रयास हमारे,
तेरे कुल- संहारक है।
साफ-सफाई ,उपचार-चिकित्सा ,
शोध -विज्ञान की ढाल बना।
तुझको सबक हम सिखला देंगे ,
जो तू आगे और ठना।”
इतना कहकर मैने फिर ,
मच्छर-भगाऊ इस्तेमाल किया ।
तूं-तूं करता गिर पड़ा जमीं पर
जब मैंने उसे बेहाल किया ।
मारा वो फ़टका था उस पर,
वो सीधा स्वर्ग सिधार गया।
फटके की फटकार से मेरा,
चेतन मन भी जाग गया।
आँख जो खोली नींद नहीं थी,
ना ही था सपना मच्छर ।
पर मच्छरों की तूं-तूं तूं-तूं
फैली थी घर आंगन पर।
-अजस्र(दुर्गेश मेघवाल)