निशा गई दे करके ज्योति
निशा गई दे करके ज्योति निशा गई दे करके ज्योति,नये दिवस की नयी हलचल!उठ जा साथी नींद छोड़कर,बीत न जाये ये जगमग पल!!भोर-किरन की हवा है चलती,स्वस्थ रहे हाथ और पैर!!लाख रूपये की दवा एक हीसुबह शाम की मीठी सैर!!अधरों…
निशा गई दे करके ज्योति निशा गई दे करके ज्योति,नये दिवस की नयी हलचल!उठ जा साथी नींद छोड़कर,बीत न जाये ये जगमग पल!!भोर-किरन की हवा है चलती,स्वस्थ रहे हाथ और पैर!!लाख रूपये की दवा एक हीसुबह शाम की मीठी सैर!!अधरों…
हिन्दी बिन्दी भूल गये बड़े बड़े हैं छंद लिखैया, सूनी किन्तु छंद चटसार|हिन्दी बिन्दी भूल गये सब, हिन्दी हिन्दी चीख पुकार||है हैं का ही अन्तर भूले, बिना गली खिचड़ी की दाल|तू तू में में मची हुई है, नोंचत बैठ बाल…
कागा की प्यास कागा पानी चाह में,उड़ते लेकर आस।सूखे हो पोखर सभी,कहाँ बुझे तब प्यास।।कहाँ बुझे तब प्यास,देख मटकी पर जावे।कंकड़ लावे चोंच,खूब धर धर टपकावे।।पानी होवे अल्प,कटे जीवन का धागा।उलट कहानी होय,मौत को पावे कागा।। कौआ मरते देख के,मानव…
धुआँ घिरा विकराल बढ़ा प्रदूषण जोर।इसका कहीं न छोर।।संकट ये अति घोर।मचा चतुर्दिक शोर।।यह भीषण वन-आग।हम सब पर यह दाग।।जाओ मानव जाग।छोड़ो भागमभाग।।मनुज दनुज सम होय।मर्यादा वह खोय।।स्वारथ का बन भृत्य।करे असुर सम कृत्य।।जंगल किए विनष्ट।सहता है जग कष्ट।।प्राणी सकल कराह।भरते दारुण आह।।धुआँ घिरा विकराल।ज्यों उगले विष व्याल।।जकड़ जगत निज दाढ़।विपदा करे प्रगाढ़।।दूषित नीर समीर।जंतु समस्त अधीर।।संकट में अब प्राण।उनको कहीं न त्राण।।प्रकृति-संतुलन ध्वस्त।सकल विश्व अब त्रस्त।।अन्धाधुन्ध विकास।आया जरा न रास।।विपद न यह लघु-काय।शापित जग-समुदाय।।मिलजुल करे उपाय।तब यह टले बलाय।।बासुदेव अग्रवाल ‘नमन’तिनसुकियाकविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद Post Views: 39
धरती हम को रही पुकार । समझाती हमको हर बार ।। काहे जंगल काट रहे हो ।मानवता को बाँट रहे हो ।इससे ही हम सबका जीवन,करें सदा हम इससे प्यार ।। धरती हमको रही पुकार ।। बढ़ा प्रदूषण नगर नगर…