निशा गई दे करके ज्योति

निशा गई दे करके ज्योति

निशा गई दे करके ज्योति,
नये दिवस की नयी हलचल!
उठ जा साथी नींद छोड़कर,
बीत न जाये ये जगमग पल!!
भोर-किरन की हवा है चलती,
स्वस्थ रहे हाथ  और  पैर!!
लाख रूपये की दवा एक ही
सुबह शाम की मीठी सैर!!
अधरों पर मुस्कान सजाकर!!
नयन लक्ष्य पर हो अपना!!
पंछी बन जा छू ले अम्बर
रात को देखा जो सपना!!
दुख की छाँह पास न आवे
शुभ प्रभात कहिये!!
जेहि विधि राखे राम
तेहि विधि रहिये!!!
-राजेश पान्डेय”वत्स”
पूर्वी छत्तीसगढ़!!
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

Leave a Reply