Author: कविता बहार

  • सुंदर और अच्छे में भेद

    सुंदर और अच्छे में भेद

    युवावस्था में सुंदर दिखते हैं सभी,
    चाह होती है,उम्र की परवाह होती है,
    श्रृंगार से प्रेम,दर्पण से लगाव,
    घण्टों निहारते अपने हाव-भाव,
    आधुनिक परिधानों से सुसज्जित,
    भीड़ में अलग दिखने की चाह में भ्रमित!
    किंतु–
    प्रौढ़ावस्था में,
    श्रृंगार बदलने लगता है,
    कभी मन मचलता था अब,
    शांत रहने लगता है!
    सुर्ख,चटक रंगों को छोड़,
    मन जोगिया चुनने लगता है,
    भीड़,शोर से दूर,
    एकांत में रमने लगता है!
    सौंदर्य प्रसाधनों के,
    रंग धुलने लगते हैं,
    एक -एक कर मन के मैल,
    घुलने लगते हैं!
    आंखों की धूमिल रौशनी में,
    मन का दर्पण दिखता स्वच्छ,
    ढलती उम्र का निर्मल,उज्ज्वल पक्ष!

    तन सुंदर नहीं,मन अच्छा हो जाता है,
    झूठे आडम्बर का चोला उतार,
    मन सच्चा हो जाता है…….

    डॉ. पुष्पा सिंह ‘प्रेरणा’

  • ख्वाब में प्रिय

    ख्वाब में प्रिय

    रात ख्वाब में देखा प्रिय,,
    मैंने तुम्हारा साथ हो,,
    झट आई बिछावन पे,,
    और बोली करो प्यार की बात हो,,

           है तू मेरी हर साँस में,
           सबसे अलग तू खास में,,
           मत देख यूँ अब आ लिपटकर,,
           गुजार लूँ आज की रात हो,,

    की कंपकंपाती सर्द के दिन,,
    और उम्र में मैं बहुत कमसीन,,
    फिर भी जी चाहता है तेरे बाहों से,,
    हटाऊँ नहीं दोनों हाथ हो,,

          हम जब मिलें यूँ हीं मिलें,,
          हर जन्म मे मुझे तू हीं मिले,,
          बस ऐसे ही इश्क में,,
          होता रहे मुलाकात हो,,

    इतना ही अभी ख्वाब में ,,
    बस देखा था सुनो प्रिय,,
    कि अचानक तेरे बाँके  की,,
    खुल गई आँख हो।।

    बाँके बिहारी बरबीगहीया

  • हिन्दी है हमारी स्वाभिमान की भाषा

    हिन्दी है हमारी स्वाभिमान की भाषा

    हिन्दी है हमारी स्वाभिमान की भाषा,,
    आओ करें इसकी अगवानी ।
    आज बता दें हम दुनिया को,,
    हिन्दुस्तान है हिन्दी की राजधानी ।
    हे हिन्दी तुम प्रेम की भाषा,,
    सदा करें तेरी दरवानी ।।

    हिन्दी है हमारी मातृभाषा,,
    इसी में है मेरी अमिट निशानी ।
    विश्व पटल पर हिन्दी भाषा को,,
    है हमको पहचान दिलानी ।
    हे हिन्दी आत्मा की भाषा ,,
    सदा करें तेरी दरवानी ।।

    हिन्दी है संतों की भाषा ,,
    संत की भाषा है गुरुवाणी ।
    हिन्दी  हमारी भाषाओं की संगम,,
    पहचान हमारी युगों पुरानी।
    है हिन्दी सदग्रंथ की भाषा ,,
    सदा करें तेरी दरवानी ।।

    हिन्दी है मौलिक सोच की भाषा,,
    सुनो समझ लो विश्व के प्राणी।
    बड़े बड़े महामानव ने भी इसपर,
    अपनी-अपनी राय बखानी ।
    ब्रह्म देव की इस अमिट सृष्टि में,,
    हिन्दी की इतिहास पुरानी ।
    हे हिन्दी हम सब की गौरव,,
    सदा करें तेरी दरवानी ।।

    बाँके बिहारी बरबीगहीया, बिहार

  • कविता का संसार

    कविता का संसार

    गीतों ने संसार रचाया
    हंसी-खुशी के ताल संग।
    अलंकारों की झंकार में
    नाचता है छमछम छंद।।

    नायिका के ख्वाब सजाने
    नायक चाँद-सितारे लाया
    नदिया गीत सुहाने गाये
    गूंजे निर्झर कलकल नाद

    दुःख -सुख की अजब रंगोली
    विरह-मिलन की गमगीनी
    डूब-उबरते जाने कितने प्रेमी
    प्रीत के सागर में।।

    रंगमंच के इस खेले में
    नवरस में डूबे चारण
    कभी ओज में शब्द गूंजते
    कभी भक्ति में झूम रहे

    कभी विभत्स का प्रदर्शन
    कभी ताण्डव दिखलाता 
    कभी ग्लानि में डूबता कवि 
    कभी मान मर्यादा रखता

    मन आया राधेरानी पर
    रास -रसैया ,ता ता थैया
    नाचने लगे गोप-ग्वालन 
    मुरली संग कृष्ण कन्हैया

    विरही प्रेमी पत्थर खाके भी 
    लैला लैला रटता रहता है
    अपने रांझे से बिछुड़ी हीर
    गम की चीख मारे फिरता है

    अट्टहास कराता विदुषक
    कभी स्तंभित कर जाता है
    स्वेद बहाता कभी नायक
    कभी रौद्र बन जाता है

    कविता का संसार ये सारा
    ममतामय हो जाता है
    जब माँ की लोरी में 
    नन्हा बालक सो जाता है

    नाना रुपा छंद सजे हैं
    नाना अलंकृत रुप धरे
    कभी भजन में बहता है
    तो कभी सृजन की राह चले ।

    डा.नीलम, अजमेर

  • अकड़ पर कविता

    अकड़ पर कविता

    जीवन के इस उम्र तक
    ना जाने कितने मुर्दे देखे।
      कितनो को नहलाया
       तैयार भी किया
    और पाया
        केवल अकड़
    सचमुच मुर्दो में अकड़ होती है
      लेकिन जीते जी इंसान
       क्यूं दिखाते है अकड़
             क्या वे मुर्दे के समान है
             या यही उनकी पहचान है
    मरना तो सब को है
    फिर अकड़ अभी से क्यूं??
       जियो जी भर के
       प्यार से नाजुकता से।
    निभा लो रिश्ता
         दुलार से अपनेपन से,
    फिर तो विदा होना है,
      संसार से,
    सभी रिश्तों नातों से
    और उसी दिन दिखा देना
         अपनी अकड़।

    *मधु गुप्ता “महक”*