माँ पर कविता

    माँ पर कविता  

बड़ी हसरत भरी आँखे लिए क्या
           ताकती है माँ ।
नहीं कहती जुबाँ से वो मगर कुछ
           चाहती है माँ ।।
बदलते रोज हम कपड़े नये फैशन
             जमाने   के ,
तुम्हे कुछ है पता साड़ी पुरानी
           टांकती है माँ ।
अगर कोई कभी आये तुम्हारे घर
            जरा    देखो ,
कमी कोई न हो अक़सर झरोखे
           झांकती है माँ ।
अभी आया नहीं था माँ कहे लड़का
               यकीं होगा ,
कहीं  ठंड़  न  लगे  तुझको  जर्सी को
             काढ़ती है माँ ।
तुझे क्या चाहिए माँ के अलावा कौन
                 है  समझा ,
भरे   संसार  में  सबसे    ज़ियादा
              जानती है माँ ।
अगर वो चाहती तो तू कभी का मर
                गया   होता ,
बिना ही लोभ  के  वो   दूध  अपना
              बांटती है माँ ।
                 ~  रामनाथ साहू ” ननकी”ः
                         मुरलीडीह (छ. ग.)
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कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

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