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सेना दिवस पर हिंदी कविता

भारतीय सैनिकों का दर्द हम कम से कम अपने दिल में उतार कर देश की सेना को सम्मान के नजरिए से देखें तो यह भी एक बड़ी देशभक्ति होगी। सीमा पर तैनात एक जवान का दर्द इस कविता में शामिल किया गया है।

Republic day

सैनिकों पर कविता

सर पे कफ़न बाँधे, हाथ में बंदूक ताने।
बढ़ते वीर सैनिक,आतंक को मारने।

भगत भी कहते थे,शेखर भी कहते थे।
दुश्मनों का सारा नशा, लगे है उतारने।

धरती भी कहती हैं, गगन भी कहता हैं।
अब तो हवा चली है,लगी है पुकारने।

देश के सीमा में डटे,मेरे वीर जवानों ने।
पल पल बढ़े आगे,पापी को संहारने।

  • डीजेन्द्र क़ुर्रे “कोहिनूर”

सैनिको पर कविता

बलिदानी पोशाक है, सैन्य पुलिस परिधान।
खाकी वर्दी मातृ भू, नमन शहादत मान।।

खाकी वर्दी गर्व से, रखना स्व अभिमान।
रक्षण गुरुतर भार है, तुमसे देश महान।।

सत्ता शासन स्थिर नहीं, स्थिर सैनिक शान।
देश विकासी स्तंभ है, सेना पुलिस समान।।

देश धरा अरु धर्म हित, मरते वीर सपूत।
मातृभूमि मर्याद पर , आजादी के दूत।।

आदि काल से हो रहे, ऐसे नित बलिदान।
वीर शहीदों को करें,नमन सहित अभिमान।।

आते गिननें में नहीं, इतने हैं शुभ नाम।
कण कण में बलिदान की,गाथा करूँ प्रणाम।।

आजादी हित पूत जो, किए शीश का दान।
मात भारती,हम हँसे, उनके बल बलिदान।।

गर्व करें उन पर वतन, जो होते कुर्बान।
नेह सपूते भारती, माँ रखती अरमान।।

अपना भारत हो अमर, अटल तिरंगा मान।
संविधान की भावना, राष्ट्र गान सम्मान।।

सैनिक भारत देश के, साहस रखे अकूत।
कहते हम जाँबाज हैं, सच्चे वीर सपूत।।

रक्षित मेरा देश है, बलबूते जाँबाज।
लोकतंत्र सिरमौर है, बने विश्व सरताज।।

विविध मिले हो एकता, इन्द्रधनुष सतरंग।
ऐसे अनुपम देश के, सभी सुहावन अंग।।

जय जवान की वीरता,धीरज वीर किसान।
सदा सपूती भारती, आज विश्व पहचान।।

संविधान सिरमौर है, संसद हाथ हजार।
मात भारती के चरण ,सागर रहा पखार।।

मेरे प्यारे देश के, रक्षक धन्य सपूत।
करे चौकसी रात दिन, मात भारती पूत।।

रीत प्रीत सम्मान की, बलिदानी सौगात।
निपजे सदा सपूत ही, धरा भारती मात।।

वेदों में विज्ञान है, कण कण में भगवान।
सैनिक और किसान से, मेरा देश महान।।

आजादी गणतंत्र की, बनी रहे सिरमौर।
लोकतंत्र फूले फले, हो विकास चहुँ ओर।।

मेरे अपने देश हित, रहना मेरा मान।
जीवन अर्पण देश को, यही सपूती आन।।

रक्षण सीमा पर करे, सैन्य सिपाही वीर।
शान्ति व्यवस्था में पुलिस,रहे संग मतिधीर।।

सोते पैर पसार हम, शीत ताप में सैन्य।
कर्मशील को धन्य हैं, हम क्यों बनते दैन्य।।

सौदा अपने शीश का, करता वीर शहीद।
मूल्य तिरंगा हो कफन, है आदर्श हमीद।।

हिम घाटी मरुथल तपे, पर्वत शिखर सदैव।
संत तुल्य सैनिक रहे, गिरि कैलासी शैव।।

रक्षक हिन्दी हिन्द के, तुम्हे नमन शत बार।
खाकी वर्दी आपको ,पुण्य हृदय आभार।।

शर्मा बाबू लाल अब, दोहा लिख पच्चीस।
सैनिक वीर जवान हित, नित्य नवाए शीश।।

  • बाबू लाल शर्मा बौहरा

युद्ध में जख्मी सैनिक साथी से कहता है

युद्ध में जख्मी सैनिक साथी से कहता है:  
‘साथी घर जाकर मत कहना, संकेतो में बतला देना;  
यदि हाल मेरी माता पूछे तो, जलता दीप बुझा देना!  
इतने पर भी न समझे तो दो आंसू तुम छलका देना!!  
यदि हाल मेरी बहना पूछे तो, सूनी कलाई दिखला देना!  
इतने पर भी न समझे तो, राखी तोड़ दिखा देना !!  
यदि हाल मेरी पत्नी पूछे तो, मस्तक तुम झुका लेना!  
इतने पर भी न  समझे तो, मांग का सिन्दूर मिटा देना!!  
यदि हाल मेरे पापा पूछे तो, हाथों को सहला देना!  
इतने पर भी न समझे तो, लाठी तोड़ दिखा देना!! 
यदि हाल मेरा बेटा पूछे तो, सर उसका सहला देना!  
इतने पर भी न समझे तो, सीने से उसको लगा लेना!!  
यदि हाल मेरा भाई पूछे तो, खाली राह दिखा देना!  
इतने पर भी न समझे तो, सैनिक धर्म बता देना!!  

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