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भँवरा

भँवरा

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मधु का अभिलाषी भँवरा
करे मधुऋतु का इंतजार
भर गई नव मुकुल गागरी
चहुँ ओर चली है मंद बयार।
पुष्प-पुष्प पर भ्रमर मंडराए
गीत नव मिलन गुनगुनाए
मकरंद भरी मंजरी हृदय पर
चिरंतन सुख मधुप को भाए।
यौवन छा गया कुसुमों पर
महकी कोंपल पुष्पों की डाली
रसपान करे  मदमत्त हो भंवरा
कोकिल हो उठी है मतवाली।
चिरप्रतीक्षित मकरंद पिपासा
तृप्त भ्रमर नवजीवन पाया
मधुरस के असीम आनंद ने
भंवरे को मदमत्त बनाया।
मधुर मिलन भंवरे का फूल से
आलिंगन पाश तन हरसाया
प्रेमासिक़्त हो भंवरे ने फिर
मंजरी का यौवन महकाया।
बिछोह न हो भंवरे का फूल से
गीत मिलन के गाता है
समय सदा इक सा नहीं रहता
मधुऋतु में मधुप गुनगुनाता है।
कुसुम
कुसुम लता पुंडोरा
नई दिल्ली
9968002629
कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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