भाग्य- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”
भाग्य पर भरोसा न कर
कर्म से परे न हट
कर्म धरा पर उतर
भाग्य को मुटठी में कर
भाग्य पर भरोसा न कर
सफलता मिलेगी तुझे
यह सोच बढ़ा कदम
कर्महीन बन धरा पर
भाग्य पर संकट न बन
भाग्य पर भरोसा न कर
मंजिलें आसां नहीं पर
चाहतीं परिश्रम अथक
रास्ते कठिन पर
चाहते अनगिनत परीक्षण
भाग्य पर भरोसा न कर
कल का भरोसा न कर
वर्तमान परिवर्तित कर
जीवन संवार ले
भाग्य को निखार दे
भाग्य पर भरोसा न कर
रुकना तेरी नियति नहीं
आगे बढ़, बढ़ते चल
छू ले तू आसमां , फिर
भाग्य पर इतरा के चल
भाग्य पर भरोसा न कर
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