CLICK & SUPPORT

बिहार बरबीघा (पुनेसरा) के कवि बाँके बिहारी बरबीगहीया द्वारा रचित कविता तुम और चाँद जो निश्छल प्रेम पर कविता को को दर्शाता है ।।

निश्छल प्रेम पर कविता

चाँद तू आजा फिर से पास मेरे
बिन तेरे जिन्दगी अधूरी है ।
खोकर तुम्हें आज मैंने जाना है
मेरे लिए तू कितनी जरूरी है ।।

रूठी हो अगर तो मैं मनाता हूँ
माफ कर अब मैं कसम खाता हूँ
गलती ना होगी अब से वादा है
तेरे कदमों में सर झुकाता हूँ ।

इश्क है तुमसे तू हीं जान मेरी ।
तेरे बिन अपनी कोई पहचान नहीं
मर हीं जाऊँगा चाँद तेरे बिन ।
मान जा इंदु रख ले मान मेरी ।।

तू हीं हिमकर तू हीं अमृतकर
तुझमे शीतलता तुझसे जुन्हाई ।
एक दफा फिर से मुस्कुरा दो ना
फिर से बहने लगेगी पुरबाई ।।

बादामी रातों में तेरी चंद्रकला
पाट देती है प्रेम की दूरी ।
तेरी तरूणाई ऐसी लगती है ।
जैसे हर अंग से छलके अंगुरी ।।

पूनम की रात में जब तुम आती हो।
जगती है मन में प्रेम की आशा ।
एक नजर देखो ना चंदा मेरी तरफ ।
पूरी हो जाएगी मेरी अभिलाषा ।।

? सर्वाधिकार सुरक्षित?

✒ बाँके बिहारी बरबीगहीया

? तुम और चाँद ?

CLICK & SUPPORT

You might also like