छू लेंगे हम आसमान- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

इंद्रधनुष

छू लेंगे हम आसमान- कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

छू लेंगे हम आसमान
कौन कहता है
हम बच्चे हैं
हममें जोश नहीं है
संकल्प की पूंजी
हमारी धरोहर
कर्त्तव्य की राह
हमारी डगर
वादियों में सत्य की
विचरते हैं हम
और
कर्म की राह पर
चलते हैं हम
कौन कहता है
छू सकते नहीं हम आसमान
छू लेंगे हम आसमान
कौन कहता है हम बच्चे हैं
गुरु शिष्य परंपरा का
करते हैं आचमन
बुजुर्गों के आशीर्वचन तले
पलता हमारा बचपन
संवारते खिलते विचार हमारे
पाते हम सुरक्षा
होते संस्कारित
कहलाते
संस्कृति के रखवाले हम
विद्यालयों के प्रांगण तले
संवारता हमारा बचपन
हर-छण हर -पल
खिलता हमारा तन मन
विचरों के युद्ध में
बनते विजेता
साथ ले
पुस्तकों का
अग्रसर होते
उस मंजिल की और
जो हमारा सपना होता
हम हर पल
ऋणी होते जाते
उस शिक्षक के
जो दीपक की तरह
स्वयं को जला
हमारे जीवन को
रोशन करता
इस संपूर्ण
जीवन के साथ
जी रहे हैं हम
कौन कहता है
छू नहीं सकते हम आसमान
कौन कहता है
हम बच्चे हैं

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