चित चोर राम पर कविता / रश्मि

चित चोर राम पर कविता / रश्मि

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चित चोर कहो , 
न कुछ और कहो। 
मर्यादा पूरूषोत्तम है । 
हे सखी !
सभी जो मन भाये
वो मनभावन अवध किशोर कहो। 
चित चोर……..

है हाथ धनुष मुखचंद्र छटा, 
लेने आये सिय हाथ यहां। 
तारा अहिल्या  को जिसने 
हे सखि उन चरणों को
मुक्ति का अंतिम छोर कहो। 
चित चोर……

बाधें न बधें वो बंधन है। 
देखो वो रघुकुल नंदन है। 
धीर वीर गंभीर रहे पर
सौम्य, सरल इनका मन है
जो खुद के नाम से पूर्ण हुए
हे सखि !तुम उन्हें श्रीराम कहो
चित चोर…

सम्मान करें और मान करें
हर नारी का स्वाभिमान रखें। 
प्रेमपाश मे बंध गये जो
हे सखि! उन्हें जनक लली के सियाराम कहो। 
चित चोर…….

भक्ति से सबने पूजा है। 
उनसा ना कोई दूजा है
हनुमत के भगवन ! 
तीनों भाईयों के रघुवर
रावण को जिसने तारा है। 
हे सखि! तुम उनको दो शब्दों में समाहित ब्रम्हांड कहो। 
चलो सब मिल, 
जय जय राम कहो। 

रश्मि (पहली किरण) 
बिहार

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