जब भी दीप जलाना साथी/ हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश

जब भी दीप जलाना साथी

जब भी दीप जलाना साथी,
उर के तमस मिटाना साथी।1।

भेद-भाव सब भूल प्यार से,
सबको गले लगाना साथी।2।

दो दिन का यह मेला जीवन,
हॅसना साथ हॅसाना साथी।3।

महल-दुमहले और झोपड़ी,
सबको खूब सजाना साथी।4।

घर-आंगन खलिहान हमारे,
दीप-ज्योति बिखराना साथी।5।

वीर-शहीदों की सुधियों में,
मन्दिर दीप सजाना साथी।6।

धर्म सनातन को पहचानो,
संस्कार अपनाना साथी।7।

कहीं भटक ना जाए कोई,
सबको राह दिखाना साथी।8।

हृदय सुकोमल स्नेह भरा हो,
सबमें प्यार लुटाना साथी।9।

विश्व-गुरू हो देश हमारा,
तुम भी हाथ बॅटाना साथी।10।

रचना मौलिक,अप्रकाशित,स्वरचित,सर्वाधिकार सुरक्षित है।

हरिश्चन्द्र त्रिपाठी ‘हरीश;
रायबरेली (उप्र) 229010