दशहरा पर कविता-शैलेन्द्र कुमार चेलक

किसी भी राष्ट्र के सर्वतोमुखी विकास के लिए विद्या और शक्ति दोनों देवियों की आराधना और उपासना आवश्यक है। जिस प्रकार विद्या की देवी सरस्वती है, उसी प्रकार शक्ति की देवी दुर्गा है। विजया दशमी दुर्गा देवी की आराधना का पर्व है, जो शक्ति और साहस प्रदान करती है। यह पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी को मनाया जाता है। विजया दशमी का पर्व दस दिनों तक (प्रति पदा से दशमी तक) धूमधाम से मनाया जाता है। इसमें कई प्रकार की पूजा होती है। नवरात्र पूजा, दुर्गा पूजा, शस्त्र पूजा सभी शक्ति की प्रतीक दुर्गा माता की आराधना और उपासना है। अतीत में इस देवी ने दुष्ट दानवों का वध करके सामान्य जन और धरती को अधर्मियों से मुक्त किया था।

दशहरा पर कविता

जैसे नया वर्ष आते ही ,
लोग मन ही मन संकल्प लेते हैं ,
आत्म आंकलन कर ,
सच का विकल्प लेते हैं ,
बुराइयों को छोड़ ,
अच्छाईयों को अपनाएंगे ,
गौतम -गांधी की तरह ,
हम भी अच्छे बन पायेंगे ,
वैसे ही कोई हिन्दू दशहरा के दिन 
रावण दहन के बाद ,
और कोई मुस्लिम ईद पर 
नमाज़ के बाद ,
पर जैसे -जैसे दिन गुज़रता है
रावण फिर जिंदा हो जाता है ,
और हमारी सारी संकल्प  
धरि की धरि रह जाती है ,
अन्तर्रात्मा यह 
बार बार कह जाती है 
सब में ज्ञान और योग्यता अंतर्निहित है ,
फिर यह कैसी विरोधाभास है,
पल -पल जिंदा होता है रावण ,
हर कही उसी का आभास है ,
रावण के नाना रूप दिखते हैं 
कुछ बिकवाता है ,कुछ स्वयं बिकते है,
अत्याचारी ,भ्रष्टाचारी ,आतंकवादी ,
ये सब लूटते हैं असहाय जनो को ,
दुरस्त बसे निर्धनों को ,
क्योंकि कुछ  तो लूटने को , 
खुद को लुटाते है ,
पता नही ये पैदा करते हैं रावण 
या आप ही आप पनप जाते हैं,
हाल ऐसा ही रहा तो 
घर में ही बार -बार सीता का हरण होगा ,
राम जैसे कहते रह जाएंगे ,
मुस्कुरा रहा रावण होगा ,
अट्टहास करते बुराई (रावण) को ,
न आने दो मन मे ,
राम धारो आत्मा में ,
अयोध्या हो तन में ,
रावण देखो अपना ,
न दुनियावी वन में ,
राममय दिखे जहाँ ,
हर किसी का राम हो जीवन मे  ,

-शैलेन्द्र चेलक

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