तुम नहीं होती तब – नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

तुम नहीं होती तब


चादर के सलवटों में
बेतरतीब बिखरे कपड़ों में
उलटे पड़े जूतों में
केले और मूंगफली के छिलकों में
लिखे,अधलिखे और अलिखे 
मुड़े-तुड़े कागज़ के टुकडों में 
खुद बिखरा-बिखरा-सा पड़ा होता हूँ

मेरे सिरहाने के इर्द-गिर्द
एक के बाद एक 
डायरी,दैनिक अख़बारों,पत्रिकाओं,
कविताओं, गजलों
और कहानियों की कई पुस्तकें
इकट्ठी हो होकर
ढेर बन जाती हैं

अनगिनत भाव और विचार
एक साथ उपजते रहते हैं
चिंतन की प्रक्रिया लगातार
चलती रहती है
कई भाव 
उपजते हैं विकसते हैं और शब्द बन जाते हैं
कई भाव
उपजते हैं और विलोपित हो जाते हैं

विचारों में डूबे-डूबे
कभी हँस लेता हूँ
कभी रो लेता हूँ
कभी बातें करता हूँ
गाली या शाबाशी के शब्द
निकल जाते हैं कई बार
बस इसी तरह रोज
विचार और रात दोनों गहरे होते जाते हैं

सो जाता हूँ पर 
नींद में भी कई विचार पलते रहते हैं
अमूमन ऐसे ही कटते हैं मेरे दिन
जब-जब तुम नहीं होती….।

— नरेन्द्र कुमार कुल

मित्र

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"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

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