वक़्त से मैंने पूछा-नरेन्द्र कुमार कुलमित्र

वक़्त से मैंने पूछा     

वक़्त से मैंने पूछा
क्या थोड़ी देर तुम रुकोगे ?
वक़्त ने मुस्कराया
और
प्रतिप्रश्न करते हुए
क्या तुम मेरे साथ चलोगे?
आगे बढ़ गया…।

वक़्त रुकने के लिए विवश नहीं था
चलना उसकी आदत में रहा है 
सो वह चला गया
तमाम विवशताओं से घिरा 
मैं चुपचाप बैठा रहा
वक्त के साथ नहीं चला
पर
वक्त के जाने के बाद
उसे हर पल कोसता रहा
बार-बार लांक्षन और दोषारोपण लगाता रहा
यह कि–
वक्त ने साथ नहीं दिया
वक्त ने धोखा दिया
वक्त बड़ा निष्ठुर था,पल भर रुक न सका

लंबे वक्त गुजर जाने के बाद
वक्त का वंशज कोई मिला
वक्त के लिए रोते देखकर
मुझे प्यार से समझाया
अरे भाई!
वक्त किसी का नहीं होता
फिर तुम्हारा कैसे होता?
तुम एक बार वक्त का होकर देखो
फिर हर वक्त तुम्हारा ही होगा।

— नरेन्द्र कुमार कुलमित्र
     9755852479
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कविता बहार

"कविता बहार" हिंदी कविता का लिखित संग्रह [ Collection of Hindi poems] है। जिसे भावी पीढ़ियों के लिए अमूल्य निधि के रूप में संजोया जा रहा है। कवियों के नाम, प्रतिष्ठा बनाये रखने के लिए कविता बहार प्रतिबद्ध है।

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