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गणपति पर कविता – नीरामणी श्रीवास नियति

गणपति
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गणपति पर कविता

गणपति बप्पा आ गए ,भादो के शुभ माह।
भूले भटके जो रहे , उन्हें दिखाना राह ।।
उन्हें दिखाना राह , कर्म सत में पग धारे ।
अंतस के खल नित्य , साधना करके मारे ।
नियति कहे कर जोड़, चाहते हो गर सदगति ।
शरणागत हो आज , ध्यान करना है गणपति ।।

गणपति बप्पा मोरिया , गाते भक्तन साथ ।
दिवस चतुर्थी भाद्र पद, जन्म आपका नाथ ।।
जन्म आपका नाथ , मातु ने मूर्ति बनाई ।
किया उसे जीवंत , पुत्र गौरा कहलाई ।।
नियति कहे कर जोड़, नहीं होता है अवनति ।
रहते जिनके साथ , भक्त के प्यारे गणपति ।।

माता के आदेश से , किया चौकसी द्वार ।
तभी पिता जी आ गए , कौन दिया अधिकार ।।
कौन दिया अधिकार , मुझे क्यूँ रोके ऐसे ।
मैं हूँ भोले नाथ , हटो चौखट से वैसे ।।
मातृ भक्ति से पूर्ण , अटल था उनका नाता।
रोके पितु को द्वार ,कहे यह आज्ञा माता ।।


नीरामणी श्रीवास नियति
कसडोल छत्तीसगढ़

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