गंगा दशहरा (20 जून) पर गीत

गंगा दशहरा (20 जून) पर गीत

राम
राम

गोद में तुम सदा ही खिलाती रहो, प्यार से आज तुम ही दुलारो हमें
गंगा मइया यहाँ अब तारो हमें, कष्ट सारे मिटाकर उबारो हमें।

मौत के बाद भी तो रहे वास्ता, तुम दिखाओ हमें स्वर्ग का रास्ता
अस्थियाँ, भस्म सब कुछ समर्पित करें, फिर नई जिंदगी से भला क्यों डरें
क्या पता कौन सा जन्म हमको मिले, कौन सी आत्मा फूल बनकर खिले
आस्थाएँ नहीं मिट सकेंगी कभी, अंत में साथ पाते तुम्हारा सभी।

पत्र मुख में पड़े हों तुलसी के जब, और जल तुम पिलाकर पुकारो हमें
गंगा मइया यहाँ अब तारो हमें, कष्ट सारे मिटाकर उबारों हमें।

घूमते हैं यहाँ खूब ठग आजकल, नाम से वे तुम्हारे करते हैं छल
आज दंडित करो तुम यहाँ दुष्ट जो, फिर कभी भी न सज्जन असंतुष्ट हो
व्यर्थ स्नान हो जब हुआ मन मलिन, पापियों के बढ़े पाप हैं रात- दिन
कौन उद्धार उनका करेगा कहाँ, जो सताते रहे निर्बलों को यहाँ।

तुम हमें दुर्दिनों से बचाती रहो, एक बच्चा समझकर निहारो हमें
गंगा मइया यहाँ अब तारो हमें, कष्ट सारे मिटाकर उबारो हमें।

साथ में सत्य- निष्ठा रहेगी अगर, फिर मिलेगी हमें प्यार की ही डगर
जब कदम डगमगाएँ हमें थामना, नफरतों का नहीं हो कभी सामना
कर रहे माफिया अब तुम्हारा खनन, आज उनका यहाँ पर करो तुम दमन
लोग तुमको यहाँ जो प्रदूषित करें, एक दिन देखना वे तड़पकर मरें।

आज वातावरण जब घिनौना हुआ, दूर उससे रखो फिर सँवारो हमें
गंगा मइया यहाँ अब तारो हमें, कष्ट सारे मिटाकर उबारो हमें।

रचनाकार- उपमेंद्र सक्सेना एड०
‘कुमुद- निवास’
बरेली (उ० प्र०)
मोबा० नं०- 98379 44187

You might also like