जो भी चाहा ख़ुदा से मिला ही नहीं

_ज़िंदगी से कोई अब गिला ही नहीं,_
_जो भी चाहा ख़ुदा से मिला ही नहीं_

_इक दफा बेवफा ने जो लूटा चमन,_
_प्यार का फूल फिर से खिला ही नहीं_

_चल सके जो कई मील सबके लिये,_
_अब ज़माने में वो काफ़िला ही नहीं_

_लोग अपना कहें और धोखा न दे,_
_दोस्ती का वो अब सिलसिला ही नहीं_

_फिर से मिलने का वादा किया था जहाँ,_
_आज तक मैं वहाँ से हिला ही नहीं_

© *चन्द्रभान पटेल*


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