भारत के गुरुकुल, परम्परा के प्रति समर्पित रहे हैं। वशिष्ठ, संदीपनि, धौम्य आदि के गुरुकुलों से राम, कृष्ण, सुदामा जैसे शिष्य देश को मिले।
डॉ. राधाकृष्णन जैसे दार्शनिक शिक्षक ने गुरु की गरिमा को तब शीर्षस्थ स्थान सौंपा जब वे भारत जैसे महान् राष्ट्र के राष्ट्रपति बने। उनका जन्म दिवस ही शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाने लगा।
गुरु बिन जीवन व्यर्थ
गुरु बिन जीवन व्यर्थ है ,गुरु है देव समान।
नित्य करे गुरु वन्दना,गुरु का कर नित मान।
गुरु का कर नित मान,ज्ञान की राह दिखाये।
देकर मंत्र कमाल , जगत से पार लगाये।
कहै मदन कर जोर,कर ले ढूंढना अब शुरु।
सच्चा गुरु पहचान,व्यर्थ है जीवन बिन गुरु।।