हाइकु कैसे लिखें
“हाइकु” एक ऐसी सम्पूर्ण लघु कविता है जो पाठक के मर्म या मस्तिष्क को तीक्ष्णता से स्पर्श करते हुए झकझोरने की सामर्थ्य रखता है । हिन्दी काव्य क्षेत्र में यह विधा अब कोई अपरिचित विधा नहीं है । विश्व की सबसे छोटी और चर्चित विधा “हाइकु” 05,07,05 वर्ण क्रम की त्रिपदी लघु कविता है, जिसमें बिम्ब और प्रतीक चयन ताजे होते हैं । एक विशिष्ट भाव के आश्रय में जुड़ी हुई इसकी तीनों पंक्तियाँ स्वतंत्र होती हैं ।
मेरा एक हाइकु उदाहरण स्वरूप देखें –
माँ का आँचल (05 वर्ण)
छँट जाते दुःख के (07 वर्ण)
घने बादल । (05 वर्ण)
हाइकु में 05,07,05 वर्णक्रम केवल उसका कलेवर, बाह्य आवरण है परंतु थोड़े में बहुत सा कह जाना और बहुत सा अनकहा छोड़ जाना हाइकु का मर्म है ।
हाइकु के सबसे प्रसिद्ध जापानी कवि बाशो ने स्वयं कहा है कि – जिसने चार – पाँच हाइकु लिख लिए वह हाइकु कवि है, जिसने दस श्रेष्ठ हाइकु रच लिए वह महाकवि है । यहाँ तो गुणात्मकता की बात है, परंतु हमारी हिन्दी के हाइकुकारों में संख्यात्मकता का दम्भ है, हम कुछ भी लिख कर अपने आपको बाशो के बाप समझने की भूल कर बैठते हैं । मेरे विचार से एक उत्कृष्ट हाइकु की रचना कर लेना हजारों रद्दी हाइकु लिखने की अपेक्षा कहीं अधिक श्रेयष्कर है ।
हाइकु को एक काव्य संस्कार के रूप में स्वीकार कर 05,07,05 अक्षरीय त्रिपदी, सारगर्भित, गुणात्मक, गरिमायुक्त, विराट सत्य की सांकेतिक अभिव्यक्ति प्रदान करने वाले हाइकुओं की रचना करनी चाहिए, जिसमें बिम्ब स्पष्ट हो एवं ध्वन्यात्मकता, अनुभूत्यात्मकता, लयात्मकता आदि काव्य गुणों के साथ – साथ संप्रेषणीयता भी आवश्यक रूप में विद्यमान हो । वास्तविकता यही है कि काल सापेक्ष में पाठक के मर्म को स्पर्श करने में जो हाइकु समर्थ होते हैं, वही कालजयी हाइकु कहलाते हैं ।
धान की बाली
महकती कुटिया
खुश कृषक ।
~ ● ~
फूली सरसों
पियराने लगे हैं
मन के खेत ।
~ ● ~
पूष की रात
हल्कू जाएगा खेत
मन उदास ।
~ ● ~
भोर का रुप
मुस्कान बाँट रही
कोमल धूप ।
~ ● ~
ठिठुरी धरा
आकाश में कोहरा
छाया गहरा ।
माँ पर हाइकु
01.
माँ का आँचल
छँट जाते दुःख के
घने बादल ।
—0—
02.
खुशियाँ लाती
तुलसी चौंरे में माँ
बाती जलाती ।
—0—
03.
छोटी दुनिया
पर माँ का आँचल
कभी न छोटा ।
—0—
04.
दुआएँ माँ की
ये अनाथों को कहाँ ?
मिले सौभाग्य !
—0—
05.
लिखा माँ नाम
कलम बोल उठी
है चारों धाम ।
—0—
□ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
गणतंत्र दिवस विशेष हाइकु
हा.. गणतंत्र
रोता रहा है गण
हँसता तंत्र ।
सैनिक धन्य
देश खातिर जीने
करते प्रण ।
राम रहीम
भाइयों को लड़ाते
बने जालिम ।
मनुष्य एक
रक्त सबका लाल
क्यों फिर भेद ?
मनु तू जान
सबके लिए होता
सम विधान ।
देश की रक्षा
माँ भारती सम्मान
यही हो आन ।
मातृ सेवार्थ
प्राणों का न्यौछावर
गर्व तू मान ।
✍प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
शीत के हाइकु
जल का स्रोत
चट्टानों पर भारी
निकला फोड़ ।
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सांध्य गगन
सूरज को छिपाने
करे जतन ।
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शीत का रूप
सूरज बाँच रहा
स्नेहिल धूप ।
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शीत का घात
हिलते नहीं पेड़
ठिठुरें पात ।
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पहाड़ी गाँव
छिप गया सूरज
शीत का डर ।
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□ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
पुस्तक विषय पर हाइकु
01}
ज्ञान के पाठ
पुस्तकें सहायिका
खुलें कपाट ।
02}
अच्छी किताब
दूर हुआ अंधेरा
मिला प्रकाश ।
03}
पुस्तक पास
ज्ञानी हमसफ़र
मिलता साथ ।
04}
पुस्तक पन्ने
सन्निहित प्रकाश
उजली राहें ।
05}
किताबें कैद
दीमकों की मौज
भरते पेट ।
06}
सिन्धु किताब
आओ गोता लगाएँ
ज्ञान अथाह ।
□ प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
{01}
ईश्वर खास
जर्रे – जर्रे में मिला
उसका वास ।
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{02}
कर्म के पास
कागज न किताब
बस हिसाब ।
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{03}
पिया की याद
बेरहम सावन
बरसी आग ।
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{04}
उधड़ा तन
करता रहा रफ़ू
मन जतन ।
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{05}
माटी को चीर
अंकुरित हो उठा
नन्हा सा बीज ।
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{06}
विरही मेघ
कजराया सावन
बरस पड़ा ।
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{07}
विरही मेघ
प्रेयषी आई याद
बिफर पड़ा ।
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{08}
चलना नित
घड़ी की टिक टिक
देती है सीख ।
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{09}
तरु की छाँह
पथिक को मिलता
शीतल ठाँव ।
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{10}
रहा जुनून
प्रभु से मिल कर
मिला शुकून ।
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{11}
चाँद चमका
रजनी का चेहरा
निखर उठा ।
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{12}
कुसुम खिला
माटी और नभ का
प्रणय मिला ।
[13]
आहत मन
नोंचे यहाँ बागबाँ
सुमन तन ।
[14]
चली कुल्हाड़ी
रोते देख पेड़ों को
रुठे हैं मेघ ।
[15]
बोला न दीप
परिचय उसका
प्रकाश गीत ।
[16]
बुलाते पेड़
सूख गई पत्तियाँ
बरसो मेघ ।
[17]
आहत मन
काटे लकड़हारा
पेड़ का तन ।
प्रदीप कुमार दाश “दीपक”
साहित्य प्रसार केन्द्र साँकरा
जिला – रायगढ़ (छत्तीसगढ़)
पिन – 496554