प्रेरणा दायक कविता – बढ़े चलो
न हाथ एक शस्त्र हो, न साथ एक अस्त्र हो,
न अन्न, नीर, वस्त्र हो, हटो नहीं डटो वहीं बढ़े चलो….
रहे समक्ष हिम-शिखर, तुम्हारा प्रण उठे निखर,
भले ही जाए तन बिखर, रुको नहीं, झुको नहीं बढ़े चलो..
घटा गिरी अटूट हो, अधर में कालकूट हो,
वही अमृत का घूट हो, जियो चलो, मरे चलो, बढ़े चलो…
गगन उगलता आग हो, छिड़ा मरण का राग हो,
लहू का अपने फाग हो, अड़ो वहीं, गड़ो वहीं। बढ़े चलो…
चलो नई मिसाल हो, चलो नई मशाल हो,
बढ़ो नया कमाल हो, रुको नहीं, झुको नहीं। बढ़े चलो
प्रेरणा दायक कविता