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कभी सोचा न था- कविता – महदीप जंघेल

कभी सोचा न था (कविता)

kavita

जिंदगी कभी ऐसी होगी,
कभी सोचा न था।
ऐसी वीरान,उदासी और
जद्दोजहत होगी जिंदगी,
कभी सोचा न था।

अपनो को अपने आंखों
के समक्ष खोते देखा,
और कुछ कर भी न पाया,
ऐसी लानत भरी होगी जिंदगी,
कभी सोचा न था।

दोस्त, पड़ोसी,रिश्तेदार,
परिवार को तड़पते देखा,
यूं ही बिस्तर पर मरते देखा,
कितनो के सांस उखड़ते देखा,
कभी पड़ोसी की एक छींक से ,
कभी चैन से सोता न था,
ऐसी भयानक होगी जिंदगी,
कभी सोचा न था।

घुटन भरी हो गई है ये जिंदगी,
तपन भरी हो गई है ये जिंदगी।
कभी हंसते मुस्कुराते,
अपनो से मिला करते थे,
सुख-दुःख की मीठी बातें
मजे से किया करते थे।
जिंदगी में मोड़ भी कभी ऐसे आयेंगे,
अपने , अपनो से दूर हो जाएंगे।
कभी सोचा न था।
बड़ी से बड़ी मुसीबत में भी,
कभी रोता न था।
जिंदगी ऐसी वीरान और
जद्दोजहत भरी होगी,
कभी सोचा न था।

कैद सा होगा जीवन
कभी सोचा न था।
किसी की तबाह होगी जिंदगी ,
कभी सोचा न था।
अपनो को अभी खोना पड़ेगा,
कभी सोचा न था।
हंसी खुशी जिंदगी में,
अभी रोना पड़ेगा ,
कभी सोचा न था।

📝महदीप जंघेल,
खमतराई, खैरागढ़

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