कृष्ण पर आधारित कविता -मनीभाई नवरत्न

कृष्ण पर आधारित कविता -मनीभाई नवरत्न

हे कृष्ण !
आप सर्वत्र।
फिर भी खोजता हूँ;
अगर कहूं आप पूर्ण हो ।
तो सत्य भी हो जायेगा असत्य।
चूंकि मैं अपूर्ण जो ठहरा ।

हे द्वारकाधीश !
संसार रूपी कुरुक्षेत्र के नायक !
संघर्ष में जन्मे ,
खतरों में पले
तथापि बाल लीलाएँ,
बताती जीवन के मायने।
पर्वत उठाना,
कालिया मर्दन
कंस रूपी काल को पछाड़ना
उसी की नगरी में ।
आपके श्रद्धा में,
मेरे ये शब्द कम हैं ।

मैं अकिंचन
आप प्रेम के भूखे ।
बन जाता सुदामा की पोटली ।
तो धन्य होता जीवन।
यह तुच्छ जीवन
बोल भी नहीं पाता
गोपियों की तरह
उलाहने के शब्द।
भक्ति की सहजता से कोसों दूर
केवल प्रपंच में धँसा है ।

अर्जुन भाँति
कह भी ना पाता व्यथा
विवशता मन की।
अहं से लबालब
गिरता हूं ठोकरें खाकर,
मगर आँख खोलके
देखने की कष्ट नहीं उठाता।

shri Krishna
Shri Krishna

हाय ! अकर्मण्यता
विचारों में आलस ,भावों से अलगाव,
जो साकार राधा दर्शन ना कर पाती हो
उसे कैसे मिल सकते हैं ?
निर्विकार ,निराकार
कृष्ण।

मनीभाई नवरत्न

मनीभाई नवरत्न

यह काव्य रचना छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले के बसना ब्लाक क्षेत्र के मनीभाई नवरत्न द्वारा रचित है। अभी आप कई ब्लॉग पर लेखन कर रहे हैं। आप कविता बहार के संस्थापक और संचालक भी है । अभी आप कविता बहार पब्लिकेशन में संपादन और पृष्ठीय साजसज्जा का दायित्व भी निभा रहे हैं । हाइकु मञ्जूषा, हाइकु की सुगंध ,छत्तीसगढ़ सम्पूर्ण दर्शन , चारू चिन्मय चोका आदि पुस्तकों में रचना प्रकाशित हो चुकी हैं।

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