मत्तगयन्द सवैया-आकर देख जरा अब हालत-गीता द्विवेदी
मत्तगयन्द सवैया-आकर देख जरा अब हालत
(1)
आकर देख जरा अब हालत मैं दुखिया बन बाट निहारी।
श्यामल रूप रिझा मन मीत बना कर लो रख हे गिरधारी।
काजल नैन नहीं टिकता गजरा बिखरे कब कौन सँवारी।
चाह घनेर भयो विधि लेखन टारन को अड़ते बनवारी।।
(2)
कातर भाव पुकार रही हिरणी प्रभु आकर प्राण बचाओ।
नाहर घेर लिया कुछ सूझ नहीं मति में अब राह दिखाओ।
शाम हुई सब मित्र गये इस संकट से तुम पार लगाओ।
कम्पित मात गुहार सुनो अब देर दयानिधि क्यों बतलाओ।।
गीता द्विवेदी