एक पंथ के दो पथिक
एक पंथ के दो पथिक सदा, आपस में टकरायेंगे |
टेड़ी – मेड़ी राहें जुड़कर , उनको सदा मिलायेंगे |
तन – मन पर जो ओढ़ रखा वह, चादर कितना मोटा है |
अखिल विश्व ये आज सिमटकर, लगता कितना छोटा है ||
उम्र काट देते हैं सारी, तू – तू मैं – मैं के धोखे में |
राह दिखाता दीप मिलेगा, अब तो झाँक झरोखे में ||
एक – दूसरे से मुख मोड़े, कब तक चलते जायेंगे |
एक पंथ के दो पथिक सदा, आपस में टकरायेंगे ||
लक्ष्य एक है राह अनेकों , कर थाम लो उजालों के |
दो पक्ष मिलेंगे तुमको नित, पूछे गये सवालों के ||
एक पक्ष दूरियाँ बढ़ाता, दूजा पहलू दोस्ताना |
एक करे मायूस जमाना, एक करे मन मस्ताना |
निर्भर करता ये खुद पर ही, किस पक्ष को निभायेंगे |
एक पंथ के दो पथिक सदा, आपस में टकरायेंगे |
भेदभाव की रंजिश पाले, शक्ति क्षीण मत होने दे |
अभिव्यक्ति की शुचि धारा में , मन मलीनता धोने दे |
तेज धार में जो डूबा फिर, डूबकर तैर आता है |
पार लगाने गैरों को भी , स्वयं सेतु बन जाता है ||
ऊँचे संस्कारों के पुतले, वे महान कहलायेंगे |
एक पंथ के दो पथिक सदा…