जन्मभूमि पर कविता
जहाँ जन्म देता हमें है विधाता
उसी ठौर में चित्त है मोद पाता।
जहाँ हैं हमारे पिता-बंधु-माता,
उसी भूमि से है हमें सत्य नाता।
जहाँ की मिली वायु है जन्मदानी,
जहाँ का बिंधा देह में अन्न-पानी।
भरी जीभ में है जहाँ की सुबानी,
वही जन्म की भूमि है भूमि-रानी।
कहीं जा बसे चाहता किन्तु जी है,
रहे सामने जन्म की जो मही है।
नहीं मूर्ति प्यारी कभी भूलती है,
छटा लोचनों में सदा झूलती है।
जिसे जन्म की भूमि भाती नहीं है,
जिसे देश की याद आती नहीं है,
कृतघनी यहाँ कौन ऐसा मिलेगा,
जिसे देख जी क्या किसी का खिलेगा
जिसे जन्म की भूमि का मान होगा,
उसे भाइयों का सदा ध्यान होगा।
दशा भाइयों की जिन्होंने न मानी,
कहेगा उसे कौन देशाभिमानी।
– कामता प्रसाद गुरु