होली चालीसा :-चालीसा हिंदू धर्म में विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा के लिए गायी जाने वाली प्रार्थना होती है। ये प्रार्थनाएँ विशेष रूप से उन देवी-देवताओं को समर्पित की जाती हैं जिन्हें मान्यता है कि उनकी शक्ति और कृपा से भक्तों की समस्त मांग पूरी होती है। चालीसा के पाठ के माध्यम से भक्त अपने मनोकामनाओं को पूरा करने, संतोष, शांति और धार्मिक संगति का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। कुछ प्रमुख चालीसा श्री हनुमान चालीसा, श्री दुर्गा चालीसा, श्री लक्ष्मी चालीसा, श्री गणेश चालीसा, श्री शनिदेव चालीसा, श्री साईं बाबा चालीसा आदि हैं।
होली चालीसा – बाबू लाल शर्मा
याद करें प्रल्हाद को,भले भलाई प्रीत।
तजें बुराई मानवी, यही होलिका रीत।।
हे शिव सुत गौरी के नंदन।
करूँ आपका नित अभिनंदन।।१
मातु शारदे वंदन गाता।
भाव गीत कविता में आता।।२
भारत है अति देश विशाला।
विविध धर्म संस्कृतियों वाला।।३
नित मनते त्यौहार अनोखे।
मेल मिलाप,रिवाजें चोखे।।४
दीवाली अरु ईद मनाएँ।
फोड़ पटाखे आयत गाएँ।।५
रोजे रखें करे नवराते।
जैनी पर्व सुगंध मनाते।।६
मकर ताजिए लोह्ड़ी मनते।
खीर सिवैंया घर घर बनते।।७
एक बने हम भले विविधता।
भारत में है निजता समता।।८
क्रिसमस से गुरु दिवस मनाते।
गुरु गोविंद से नेह निभाते।।९
भिन्न धर्म भल भिन्न सु भाषा।
देश एकता मन अभिलाषा।।१०
मकर गये आये बासन्ती।
प्राकृत धरा सुरंगी बनती।।११
विटप लता कलि पुष्प नवीना।
उत्तम जीवन कलुष विहीना।।१२
झूमे फसल चले पछुवाई।
प्राकृत नव तरुणाई पाई।।१३
अल्हड़ नर नारी मन गावे।
फागुन मानो होली आवे।।१४
होली है त्यौहार अजूबा।
लगे बाँधने सब मंसूबा।।१५
खेल कबड्डी रसिया भाते।
होली पर पहले से गाते।।१६
पकती फसल कृषक मन हरषे।
तन मन नेह नयन से बरसे।।१७
प्रीत रीत की राग सुनाती।
कोयल काली विरहा गाती।।१८
मौसम बनता प्रीत मिताई।
फागुन होली गान बधाई।।१९
तरुवर भी नव वसन सजाए।
मधुमक्खी भँवरे मँडराए।।२०
पुष्प गंध रस प्रीत निराली।
रसिया पीते भर भर प्याली।।२१
बौराए जन मन अमराई।
तब माने मन होली आई।।२२
हिरणाकुश सुत थे प्रल्हादा।
ईश निभाए रक्षण वादा।।२३
बहिन होलिका गोद बिठाकर।
जली स्वयं ही अग्नि जलाकर।।२४
बचे प्रल्हाद मनाई खुशियाँ।
अब भी कहते गाते रसियाँ।।२५
खुशी खुशी होलिका जला ते।
डाँड रूप प्रल्हाद बचाते।।२६
ईश संग प्रल्हाद बधाई।
होली पर सजती तरुणाई।।२७
कन्या सधवा व्रत बहु धरती।
दहन होलिका पूजन करती।।२८
दहन ज्वाल जौं बालि सेंकते।
मौसम के अनुमान देखते।।२९
दूजे दिवस रंगीली होली।
रंग अबीर संग मुँहजोली।।३०
रंग चंग मय भंग विलासी।
गाते फाग करे जन हाँसी।।३१
ऊँच नीच वय भेद भुलाकर।
मीत गले मिल रंग लगाकर।।३२
कहीं खेलते कोड़ा मारी।
नर सोचे मन ही मन गारी।।३३
चले डोलची पत्थर मारी।
विविध होलिका रीत हमारी।।३४
बृज में होली अजब मनाते।
देश विदेशी दर्शक आते।।३५
खाते गुझिया खीर मिठाई।
जोर से कहते होली आई।।३६
मेले भरते विविध रंग के।
रीत रिवाज अनेक ढंग के।।३७
पकते गेंहूँ,कटती सरसों।
कहें इन्द्र से अब मत बरसो।।३८
होली प्यारी प्रीत सुहानी।
चालीसा में यही कहानी।।३९
शर्मा बाबू लाल निहारे।
मीत प्रीत निज देश हमारे।।४०
दोहा–
होली पर हे सज्जनो, भली निभाओ प्रीत।
सबकी संगत से सजे, देश प्रेम के गीत।।
बाबू लाल शर्मा”बौहरा”
सिकंदरा 303326
दौसा,राजस्थान,9782924479
अद्भुत, पूरी विशेषताएं स्पष्ट /
उत्कृष्ट सृजन …..
आपकी लेखनी को शत – शत नमन???
आदरणीय आपकी लेखनी को नमन
आपका आत्मीय आभार जी