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नोटबंदी पर कविता

नोटबंदी पर कविता

सरकार जी 
आपने की थी नोटबंदी
आठ नवंबर
सन् दो हजार सोलह को
नहीं थके
आपके चाहने वाले
नोटबंदी के
फायदे बताते-बताते
नहीं थके
आपके आलोचक
आलोचना करते-करते
लेकिन हुआ क्या?
पहाड़ खोदने की
खट-खट सुनकर
बिल छोड़कर सुदूर
चूहा भी भाग निकला
आज है वर्षगांठ
नोटबंदी की
फायदे बताने वाले
नहीं कर रहे
नोटबंदी की याद में
कोई समारोह
मात्र आलोचक हैं
क्रियाशील
सोशल मिडिया पर। 

-विनोद सिल्ला©

कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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