इंसान हो तो सदा सदकर्म करो
इंसान हो तो सदा सदकर्म करो
या चुल्लू भर पानी में डूब मरो
चार दिन की चटक चाँदनी
फिर तो अंधेरी रात है
ये जीवन अभिनय मंच है
कुछ नहीं संग में जात है
साँसे मिली है गिनती में
कभी इसे ना ब्यर्थ करो
मुठ्ठी बाँध आए जग में
बस हाथ पसारे जाना है
रंगमंच रे दुनिया सारी
सपनों का ताना बाना है
पलक खोलकर देख मुसाफिर
हवाओं में ना रंग भरो
कामनाओं की तप्त मरू पर
मन मृगा भटका जाए
जाने कब तृष्णा मिटेगी
मृत्यु बैठी है घात लगाए
तोड़ दो बंदिशे ब्यर्थ की
मन पावन निर्मल करो
मन चंगा तो कठौती में गंगा
कहते सब मुनि ज्ञानी हैं
मन को ही साध ले प्यारे
जिंदगी आनी जानी है
काम क्रोध औ मद लोभ से
मन को सदा विजयी करो
सुधा शर्मा
राजिम छत्तीसगढ़