ईश्वर का अपमान – मनीभाई नवरत्न की विचारोत्तेजक कविता

मनीभाई नवरत्न की कविता “ईश्वर का अपमान” में बताया गया है कि इंसान ने ईश्वर की महानता को सीमित कर दिया है। पढ़ें यह विचारोत्तेजक रचना जो समाज की सोच पर गहरा प्रहार करती है।
ईश्वर सर्वव्यापी है, उसे किसी मंदिर या पूजा की सीमाओं में बाँधना संभव नहीं। कवि मनीभाई नवरत्न अपनी कविता “ईश्वर का अपमान” में दिखाते हैं कि किस प्रकार इंसान अपनी सुविधा और स्वार्थ के अनुसार ईश्वर को छोटा कर देता है।


ईश्वर का अपमान- मनीभाई नवरत्न

ईश्वर –
जिसमें आकाश समाया है,
जिसके भीतर सागर की गहराई है,
जो तूफ़ान में गरजता है
और फूल की पंखुड़ी में मुस्कुराता है।

हमने उसे पकड़ लिया!
कुछ ईंटें जोड़कर,
चूना-पत्थर लगाकर,
घंटी-घड़ियाल टाँगकर कहा –
“देखो, यही है ईश्वर!”

वाह!
क्या कमाल है इंसान की अक्ल का,
ब्रह्मांड के स्वामी को
अपनी दुकान की शोभा बना दिया।

ईश्वर तो हर ओर है –
कूड़े के ढेर में,
मजदूर की पसीने में,
भिखारी की कराह में,
कुत्ते के भूख से कराहते पेट में।

पर हमें चाहिए
सिर्फ़ चमकते फर्श,
अगरबत्तियों की गंध,
दानपात्र की खनक।

हमने ईश्वर को छोटा कर दिया,
इतना छोटा कि
वह नोटों और नारियल में समा जाए,
इतना छोटा कि
वह पंडित की फीस बन जाए,
इतना छोटा कि
वह जात-पांत और झगड़े का हथियार बन जाए।

सच कहूँ –
ईश्वर का अपमान हमसे बड़ा कोई नहीं करता।
वह तो विशाल है,
पर हमने उसे अपनी जेब में डाल रखा है,
जैसे खिलौना।

मनीभाई नवरत्न


कविता का संदेश (Meaning of the Poem)

  • ईश्वर असीम और सर्वव्यापी है।
  • इंसान ने ईश्वर को मंदिरों, जात-पांत और पैसों तक सीमित कर दिया है।
  • असली ईश्वर मजदूर की मेहनत, भूखे की पीड़ा और प्रकृति की विशालता में है।
  • जब हम ईश्वर को अपनी “दुकान” बना देते हैं, तब असली अपमान होता है।

निष्कर्ष (Conclusion)

मनीभाई नवरत्न की यह कविता हमें सोचने पर मजबूर करती है कि कहीं हम भी तो अपने स्वार्थ और दिखावे में ईश्वर का अपमान नहीं कर रहे? ईश्वर की सच्ची उपासना करुणा, सेवा और प्रेम में है।