जाग्रत हो हे भारतवासी

जाग्रत हो हे भारतवासी

कविता संग्रह
कविता संग्रह

जहाँ कभी पुष्प वाटिका हुआ करती थी,
वहाँ आज लाशों का अंबार लगा हुआ है ,

जो जमीन कभी सोने की चिड़िया होती थी ,
वहाँ आज लाशों का विछावन बिछा है ,

जो कभी विश्व का भाग्य विधाता हुआ करता था ,
वो आज भिखारी बना घुमाता है ,

जहाँ कभी मंदिरो मे मेले लगते थे ,
आज वहाँ शमशानों पर मेले लगते है ,

जहाँ कभी सभी धर्मो का सम्मान हुआ करता था ,
आज वहाँ धार्मिक कट्टरता हुआ करती है ,

जो कभी साधु- संतों की नगरी हुआ करती थी ,
आज वहाँ आज बाजार बना बैठा है ,

जहाँ कभी ईमानदारी की आवाजें गूँजती थी ,
आज वहाँ बेईमानों का अड्डा हुआ करता है ,

जहाँ के ज्ञान व विज्ञान की कभी विश्व पूजा करता था ,
आज वहा अज्ञानता का पर्याय बना बैठा है ,

जहाँ कभी दानी ज्ञानी महाराजाओं का राज हुआ करता था ,
आज वहाँ अनपढ़ बेईमानों का राज हुआ करता है ,

जहाँ कभी शिक्षित – विद्वान ही गुरु हुआ करते थे ,
आज वहाँ चोरी के नम्बरों पर शिक्षक ज्ञानदाता बन बैठे है ,

जहाँ कभी सत्य और अहिंसा की पूजा होती थी ,
आज वहाँ असत्य और हिंसा का बोलबाला हुआ करता है ,

जहाँ कभी राम, रहीम, बुद्ध, गाँधी आजाद का आदर होता था ,
वहाँ आज हिंसावादी नेताओं, आतंकवादियों की पूजा होती है ,

जहाँ की मिट्टी मे सिर्फ शांति का वास था ,
वहाँ की अब मिट्टी में खून, अशांति का घर है ,

जहाँ कभी स्त्रियों को देवी का रुप माना जता था ,
वहाँ अब स्त्रियों पर अत्यचार, हिंसा हुआ करता है ,

जहाँ सुकून भरी ठंडी हवाएँ गुजरती थीं खूबसूरत वादियों से,
आज वहाँ साँस लेना दुष्कर है,

जहाँ कभी सूरज की पहली रोशनी से सवेरा होता था ,
वहाँ आज सूरज की अंतिम रोशनी से सवेरा होता है ,

जहाँ कभी नेताओं के सिर पर खादी की टोपी होती थी ,
वहाँ आज नेताओं के सिर पर भ्रष्टाचार की टोपी है ,

जहाँ पर कभी नदियाँ माँ सम मानी जाती थीं ,
आज उनमें लाशों की नावें चल रही है ,

भारत जो कभी विश्व मे ज्ञान का सागर कहा जाता था ,
वही भारत आज अज्ञानी कहा जाता है ,

जहाँ कभी यमुना, गंगा , सरस्वती की आरती होती थी ,
आज वहाँ लाशों की आहुतियां होती है ,

जिस भारत को कभी जगत का बगीचा कहा जाता था ,
आज वहाँ ऑक्सिजन की कमी हो गई है ,
ऐसा क्यों ?

यह जो आज का भारत है, ऐसा क्यों है?
जाग्रत हो हे भारतवासी……!

– रुपेश कुमार©️
चैनपुर , सीवान , बिहार

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