जीवन – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

जीवन – कविता – मौलिक रचना – अनिल कुमार गुप्ता “अंजुम”

जीवन स्वयं को प्रश्न जाल में
उलझा पा रहा है

जीवन स्वयं को एक अनजान
घुटन में असहाय पा रहा है

जीवन स्वयं के जीवन के
बारे में जानने में असफल सा है

जीवन क्या है इस मकड़जाल को
समझ सको तो समझो

जीवन क्या है , इससे बाहर
निकल सको तो निकलो

जीवन क्या है , एक मजबूरी है
या है कोई छलावा

कोई इसको पा जाता है
कोई पीछे रह जाता

जीवन मूल्यों की बिसात है
जितने चाहे मूल्य निखारो

जीवन आनंदित हो जाए
ऐसे नैतिक मूल्य संवारो

जीवन एक अमूल्य निधि है
हर – क्षण इसका पुण्य बना लो

मोक्ष मुक्ति मार्ग जीवन का
हो सके तो इसे अपना लो

नाता जोड़ो सुसंकल्पों से
सुआदर्शों को निधि बना लो

जीवन विकसित जीवन से हो
पर जीवन उद्धार करो तुम

सपना अपना जीवन – जीवन
पर जीवन भी अपना जीवन

धरती पर जीवन पुष्पित हो
जीवन – जीवन खेल करो तुम

चहुँ ओर आदर्श की पूंजी
हर पल जीवन विस्तार करो तुम

जीवन अंत ,पूर्ण विकसित हो
नए नर्ग निर्मित करो तुम

दिवस आधारित कविता