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जीवन के दोहों का संकलन

जीवन के दोहों का संकलन

1-

है मलीन चादर चढ़ी, अंतः चेतन अंग।

समझे तब कैसे भला, हूँ मैं कौन मलंग।।

2-

प्रतिसंवेदक कॄष्ण हैं, लिया पार्थ संज्ञान।

साध्य विषय समझे तभी, हुआ विजय अभियान।।

3-

मैं अनुनादी उम्र भर, अविचारी थे काज।

जिस दिन प्रज्ञा लौ जली, समझे तब यह राज।।

(मैं – अहंकार)

4-

अवधारक बनकर करें, कुण्डलिया से योग।

नित्य करें जब ध्यान तो, हुए दूर दुर्योग।।

5-

सत्य यही अवधारणा, ब्रह्म मिले संज्ञात।

यक्ष प्रश्न जीवन समर, करें यत्न से ज्ञात।।

6-

कर्मयोग इंसान को, दे प्रशांत सा मान।

कर्मवाद अनुनाद ही, ईश्वर का गुणगान।।

7-

मनस्कार का अवनमन, ईश्वर सम्मुख मान।

नमस्कार के भाव से, है मिलता सम्मान।।

(मनस्कार – पूर्ण चेतना (ज्ञान)

8-

मति विवेक चिंतन करे, मन में अंकुश डाल।

उच्श्रृंखल मत छोड़िये, रखें नियंत्रित हाल।।

9-

सोना कुंदन जब बने, प्रखर भाव का मान।

परिष्कार शुचिता गढ़े, निर्मल मन अंजान।।

10-

निज इच्छा हरि कामना, समझें जब यह बात।

नैतिकता मन को कसे, सुधरे तब हालात।।

11-

विपदा में होती सदा, कष्टों की भरमार।

जो तारक बनते स्वयं, उनकी नैया पार।।

12-

दिव्य ज्ञान की लौ जहाँ, जल जाए इक बार।

प्रमा सुधा बरसे वहीं, जैसे मेघ अपार।।

(प्रमा – चेतना, आत्मज्ञान)

13-

दर्प कभी अच्छा नहीं, मिले न इसको मान।

अहंकार का यह परम, खो देता सम्मान।।

14-

हरि आए मन की डगर, निश्छल हिय विश्वास।

सत्य मौन आराधना, प्रभु के निकट निवास।।

15-

परहित लक्ष्य बनाइये, तज कर निज अभिमान।

पुण्य करे शुचि आपको, ले ईश्वर संज्ञान।।

16-

वैचारिकता शून्य सी, यत्र तत्र हो तंत्र।

सकारात्मक सोच सदा, खुश जीवन का मंत्र।।

17-

पानी सदा बचाइये, नित्य रहे यह ध्यान।

जल ही जीवन सूत्र है, लिया विश्व संज्ञान।।

18-

अस्त व्यस्त हमने किया, पर्यावरण मिजाज।

अतिवादी मौसम हुआ, समझे तब हैं आज।।

19-

प्रातः उठकर जो करे, नित्य ध्यान फिर योग।

स्वास्थ्य सूत्र जिसको मिले, रहता वही निरोग।।

20-

वाणी संयम से मिले, सामाजिक सम्मान।

तोल मोल बोली सदा, रखे आपका मान।।

21-

अभिनन्दन समतुल्य है, नर नारी का मान।

इनमे अंतर है नहीं , दोनों एक समान।।

22-

करें अर्चना ईश की, हरे तमस हर पीर।

अन्तर्मन को फिर चलें, यात्रा करें सुधीर।।

23-

अनुभव के आधार पर, मिलता सबको मान।

सामाजिक परिवेश में, है इसका सम्मान।।

24-

सच है नश्वर जगत में, प्रेम भाव का तत्व।

जो इसमें रच बस गया, मिले उसे अमरत्व।।

25-

दिल की बगिया में सदा, खिलें प्रेम के फूल।

मोह सभी का भंग हो, सार तत्व ये  मूल।।

26-

ईश्वर के अनुराग से, हो कष्टों का अंत।

अवनि के हर जीव सदा, हर्षित रहे अनंत।।

27-

वाणी से ही प्रेम है, और उसी से बैर।

मधुर भाषिता सर्वदा, करते सबकी खैर।।

28-

भारत की संस्कृति सदा, रही विश्व में श्रेष्ठ।

दुनियाँ रमने आ गयी, मान कुम्भ को ज्येष्ठ।।

29-

नारी के  सम्मान से, उन्नति करे समाज।

सतयुग में ऋषि कह गये, माने कलयुग आज।।

30-

प्रात कभी ऐसा रहे, सुनते कोयल तान।

मस्जिद में घंटी बजे, मंदिर करे अजान।।

नाम – राजेश पाण्डेय

उपनाम – अब्र

फोन  – 98266-24298
ई मेल [email protected]
पता – अक्षरधाम,
        श्री राम मंदिर के सामने, इंद्रप्रस्थ कॉम्प्लेक्स के पास, ब्रह्मपारा , अम्बिकापुर,
जिला – सरगुजा (छत्तीसगढ़)
पिन – 497001

कविता बहार से जुड़ने के लिये धन्यवाद

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