जीवन की नैया धीरे-धीरे खेना

जीवन की नैया धीरे-धीरे खेना


(छंद मुक्त रचना)
“ओ खेवइया।
जीवन की नैया,
है बहुत ख़ूबसूरत,
कमसिन है,
भरी हुई है नज़ाकत से।
देख,
लहरें आ रहीं है दौड़कर,
डुबोने को तत्पर।
सम्हाल पतवार,
ख़ीज लहरों की,
तूफ़ान साथ ला सकती हैं।
जीवन की नैया को,
धीरे-धीरे खेना।
रुकना नहीं ।
पलटना नहीं।
जो छुट गया ,
जो मिल न सका,
ग़म उसका नहीं करना।
खेता जा।
जो मिल जाए ,
साथ ले आगे ही आगे बढ़ता चल।
बीच मॅ॑झधार,
नहीं है तेरी मंज़िल।
तेरी मंज़िल तो,
है दूसरा किनारा,
सुंदर और प्यारा-प्यारा।
पहुॅ॑चने अपने मंज़िल तक,
तुझे बचकर है नाव चलाना,
डरावनी तरंगों को भी अपनाना।
खौफ़ न खा,
कर ले थोड़ा संघर्ष ,
पाने को उत्कर्ष।
आ जाएगा दूसरा किनारा,
हसीन और प्यारा -प्यारा।

डॉ भारती अग्रवाल
रायपुर छत्तीसगढ़