सिंहावलोकनी दोहा मुक्तक
जीवन
जीवन के इस खेल में,कभी मिले गर हार ।
हार मान मत बैठिए , पुनः कर्म कर सार ।।
सार जीवनी का यही , नहीं छोड़ना आस ।
आस पूर्ण होगा तभी , सद्गुण हिय में धार ।।
जीवन तो बहुमूल्य है , मनुज गँवाये व्यर्थ ।
व्यर्थ मौज मस्ती किया , नहीं समझता अर्थ ।।
अर्थ समझ आया तभी , जरा अवस्था देख ।
देख -देख रोता रहा , बीते समय समर्थ ।।
जीवन छोटा सा मिला , बहुत जगत के काम ।
काम-काम करता रहा , लिया न प्रभु का नाम ।।
नाम याद रखते सभी ,मिट जाता है देह ।
देह मोह फँसता रहा, गुजरे उम्र तमाम ।।
नीरामणी श्रीवास नियति
कसडोल छत्तीसगढ़