जयी बनो – जयशंकर प्रसाद

कविता बहार में आप का सवागत है आज हम जयशंकर प्रसाद की एक कविता जाई बनो इसके बारे में यह पढेंगे ,आसा है यह कविता आप आत्यन्त पसंद आयेगी

जयी बनो – जयशंकर प्रसाद


हिमाद्रि तुंग शृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रभा समुज्वला स्वतंत्रता पुकारती।


अमर्त्य वीर पुत्र हो दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो,
प्रशस्त पुण्य पंथ है, बढ़े चलो, बढ़े चलो।


असंख्य कीर्ति रश्मियाँ विकीर्ण दिव्य दाह सी
रुको न मातृभूमि के सपूत शूर साहसी।


अराति-सैन्य-सिंधु में सुवाड़वाग्नि से जलो,
प्रवीर हो, जयी बनो बढ़े चलो, बढ़े चलो।


-जयशंकर प्रसाद

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