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निर्लज्ज कामदेव

निर्लज्ज कामदेव  

ओ निर्लज्ज कामदेव
तू न अवसर देखता है,
न परिस्थितियाँ
न जाति देखता है, न आयु
न सामाजिक स्तर
यहाँ तक कि, कभी कभी
तो रिश्ता भी नहीं देखता
देशों की सीमाएं ,तेरे लिये
कोई मायने नहीं रखतीं.


तेरे कारण ही
न जाने कितने घर टूटे
आज भी टूट रहे हैं,
न जाने कितनी हत्याएं हुईं
आज भी हो रही हैं
कितने कारागार भर गये
नये कारागार बनाने पड़े
बेशर्म, तुझे तनिक लाज नहीं ?


माना शंकर ने तुझे भस्म
कर दिया था , पर
आम जन तो शंकर नहीं
हो सकता ।तेरे बाण से बचना
सब के वश की बात नहीं
प्रतीक्षा है एक और शंकर की
जो तुझे पुन: भस्म कर तेरी
राख तक को मटियामेट
कर दे जिससे तू फिर कोई
कहर न ढा सके,तूफ़ान न उठा
सके ,दिये न बुझा सके.

                *डॉoआभा माथुर*

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